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रविवार, मार्च 29, 2020

एक लेखक की कल्पना

दिन ढल रहा था मैं रात होने की खुशी मना रहा था,
रातें कटती रहीं मेरी, कभी नींदों में तो कभी जाग रहा था,
सुबह भी बहुत आई थी मेरी जिंदगी में, 
रोज नयी सुबह का इंतजार किए जा रहा था,
अन्न और जल भी खूब खाया पिया जिंदगी में,
एक बचपन भी आया था तब, मैं खेल रहा था,
जवानी दे गया और मैं फिर बचपन चाह रहा था जिंदगी में,
सर के बालों और गालों ने बताया बूढ़ापा आ रहा था,
आखिरी वक्त भी आया था जिंदगी में,
कह गया देवा से, वो तेरा ही जीवन जा रहा था,
लिख लें मनचाहा, छोटी सी जिंदगी में,
लोग तो कहेंगे जाने के बाद, अच्छा ही लिख रहा था।

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