श्री हनुमान जी का अवतार त्रेतायुग में हुआ था, हनुमान जी को भगवान महादेव का अवतार माना जाता है। हनुमान जी की माता अंजना और पिता केसरी थे, इसलिए हनुमान जी को अंजनेय और केसरीनंदन भी कहा जाता है।
केसरी नंदन के जन्म की एक पौराणिक कथा के अनुसार, माता अंजना ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या की थी। माता अंजनी की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें वरदान दिया कि मैं खुद उनके पुत्र के रूप में जन्म लूंगा।
हनुमान जी का जन्म और महादेव के संबंध में एक और पौराणिक कथा हैं कि ,
जब लंका के राजा रावण ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की, तो महादेव ने प्रसन्न होकर उसे अनेक वरदान दिए। लेकिन जब लंकापति रावण ने कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया, तो महादेव ने अपने पैर के अंगूठे से उसे दबा दिया, जिससे लंकापति को अपनी शक्ति का अहंकार टूट गया। तब रावण ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए "शिव तांडव स्तोत्र" की रचना की।
इससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ जी ने रावण को अमरत्व का वरदान तो नहीं दिया, लेकिन उसे आश्वासन दिया कि त्रेतायुग में वे स्वयं वानर रूप में जन्म लेंगे और रावण के अंत का कारण बनेंगे। यही कारण है कि भगवान शिव ने हनुमान जी के रूप में अवतार लिया।
हनुमान जी की माता अंजना एक अप्सरा थीं, जो गौतम जी की पुत्री थी, जिन्हें शापवश वानरी योनि में जन्म लेना पड़ा था।
जब अयोध्या में राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया। जब यज्ञ का प्रसाद तीनों रानियों को दिया गया, तब उसी समय भगवान शिव के निर्देश पर वायुदेव ने उस दिव्य प्रसाद का एक अंश उड़ाकर माता अंजना के पास पहुँचा दिया। उस प्रसाद को ग्रहण करने से माता अंजना गर्भवती हुईं और उन्होंने भगवान शिव के रुद्रांश रूप में हनुमान जी को जन्म दिया।
इस वजह से हनुमान जी को "शंकर सुवन", "पवनपुत्र", "अंजनेय", और "केसरीनंदन" के नाम से भी जाना जाता है। वे भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार माने जाते हैं।
हनुमान जी के जन्म का उद्देश्य भगवान राम की सेवा करना और धर्म की रक्षा करना था। वे अजर-अमर हैं और भक्तों की हर विपत्ति को दूर करने वाले माने जाते हैं।
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