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मंगलवार, मार्च 04, 2025

श्री हनुमान जी का जन्म, Shree Hanuman ji ka janm,


श्री हनुमान जी का अवतार त्रेतायुग में हुआ था, हनुमान जी को भगवान महादेव का अवतार माना जाता है। हनुमान जी की माता अंजना और पिता केसरी थे, इसलिए हनुमान जी को अंजनेय और केसरीनंदन भी कहा जाता है।

केसरी नंदन के जन्म की एक पौराणिक कथा के अनुसार, माता अंजना ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या की थी। माता अंजनी की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें वरदान दिया कि मैं खुद उनके पुत्र के रूप में जन्म लूंगा।
हनुमान जी का जन्म और महादेव के संबंध में एक और पौराणिक कथा हैं कि ,
जब लंका के राजा रावण ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की, तो महादेव ने प्रसन्न होकर उसे अनेक वरदान दिए। लेकिन जब लंकापति रावण ने कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया, तो महादेव ने अपने पैर के अंगूठे से उसे दबा दिया, जिससे लंकापति को अपनी शक्ति का अहंकार टूट गया। तब रावण ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए "शिव तांडव स्तोत्र" की रचना की।

इससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ जी ने रावण को अमरत्व का वरदान तो नहीं दिया, लेकिन उसे आश्वासन दिया कि त्रेतायुग में वे स्वयं वानर रूप में जन्म लेंगे और रावण के अंत का कारण बनेंगे। यही कारण है कि भगवान शिव ने हनुमान जी के रूप में अवतार लिया।
हनुमान जी की माता अंजना एक अप्सरा थीं, जो गौतम जी की पुत्री थी, जिन्हें शापवश वानरी योनि में जन्म लेना पड़ा था।
जब अयोध्या में राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया। जब यज्ञ का प्रसाद तीनों रानियों को दिया गया, तब उसी समय भगवान शिव के निर्देश पर वायुदेव ने उस दिव्य प्रसाद का एक अंश उड़ाकर माता अंजना के पास पहुँचा दिया। उस प्रसाद को ग्रहण करने से माता अंजना गर्भवती हुईं और उन्होंने भगवान शिव के रुद्रांश रूप में हनुमान जी को जन्म दिया।

इस वजह से हनुमान जी को "शंकर सुवन", "पवनपुत्र", "अंजनेय", और "केसरीनंदन" के नाम से भी जाना जाता है। वे भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार माने जाते हैं।

हनुमान जी के जन्म का उद्देश्य भगवान राम की सेवा करना और धर्म की रक्षा करना था। वे अजर-अमर हैं और भक्तों की हर विपत्ति को दूर करने वाले माने जाते हैं।
हमने जितनी जानकारी प्राप्त की है उसे आप तक पहुंचा रहे हैं, हनुमान जी के जन्म से संबंधित कोई और जानकारी आप भी रखते हैं तो कमेंट बॉक्स मे लिख कर हमें भेजें।

सोमवार, नवंबर 11, 2024

तुलसीदास जी का राम मिलन Ram Milan Tulsidas ji



दोस्तों, तुलसीदास जी और भगवान राम के मिलन की कहानी भारतीय भक्ति साहित्य में एक अत्यंत प्रेरणादायक और रहस्यमय घटना मानी जाती है। तुलसीदास जी को राम के अनन्य भक्त और संत के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपना जीवन श्रीराम की भक्ति और साधना में समर्पित कर दिया था, और कहा जाता है कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान राम ने उन्हें दर्शन दिए थे। इस घटना के बारे में कई लोक कथाएँ प्रसिद्ध हैं, जिनमें से एक कथा निम्नलिखित है:

हनुमान जी के माध्यम से भगवान राम का दर्शन

कहा जाता है कि तुलसीदास जी काशी में रहकर राम कथा का प्रचार-प्रसार करते थे, लेकिन उनके मन में एक गहरी इच्छा थी कि वे स्वयं भगवान राम के दर्शन करें। एक दिन, हनुमान जी उनके पास साधारण वानर के रूप में आए और उनकी भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होकर उन्हें राम दर्शन का मार्ग दिखाया।

हनुमान जी ने तुलसीदास जी से कहा कि वे चित्रकूट में जाकर भगवान श्रीराम के दर्शन पा सकते हैं। तुलसीदास जी ने हनुमान जी की बात मानी और चित्रकूट की यात्रा की। वहाँ उन्होंने कई दिनों तक भगवान राम की भक्ति में ध्यानमग्न होकर साधना की। उनकी भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होकर भगवान राम ने उन्हें चित्रकूट के घाट पर एक साधारण राजकुमार के रूप में दर्शन दिए। तुलसीदास जी ने भगवान राम को पहचान लिया और उनके चरणों में गिरकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।

भगवान राम का वर्णन

भगवान राम के दर्शन का वर्णन करते हुए तुलसीदास जी ने कहा कि रामचंद्रजी का स्वरूप अद्वितीय और दिव्य था। उनका तेज, सुंदरता, और शांति का भाव ऐसा था कि तुलसीदास जी के सारे कष्ट और मोह दूर हो गए। तुलसीदास जी ने भगवान राम को अपने सामने साक्षात देखा और उनकी भक्ति से ओत-प्रोत होकर उनके चरणों में अर्पित हो गए।

रामचरितमानस की रचना का प्रेरणास्त्रोत

भगवान राम के दर्शन के बाद तुलसीदास जी का जीवन पूर्ण रूप से परिवर्तित हो गया। इस दिव्य अनुभव से प्रेरित होकर उन्होंने "रामचरितमानस" की रचना की, जिसमें भगवान राम की संपूर्ण जीवन यात्रा और उनके आदर्शों का वर्णन किया गया। यह काव्य उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य बन गया और उन्होंने इसे भगवान राम के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक माना।

तुलसीदास जी और भगवान राम का विशेष संबंध

इस घटना ने तुलसीदास जी के जीवन में गहरा आध्यात्मिक परिवर्तन किया और भगवान राम के साथ उनके संबंध को और अधिक प्रगाढ़ बना दिया। भगवान राम का यह दर्शन तुलसीदास जी के लिए इतना महत्त्वपूर्ण था कि उन्होंने अपनी रचनाओं में सदैव इसे महसूस किया और अपनी भक्ति के माध्यम से इसे व्यक्त किया।

इस प्रकार, तुलसीदास जी और भगवान राम के मिलन की यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और प्रेम से भगवान की कृपा पाई जा सकती है। तुलसीदास जी का जीवन इस बात का प्रतीक है कि जब भक्ति निश्छल होती है, तो स्वयं भगवान अपने भक्त के समक्ष प्रकट हो जाते हैं।
आप भी अपनी भक्ति का भाव कमेंट में "जय श्री राम" लिख कर हमें भेजिए।


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