दोस्तों, विनयपत्रिका संत तुलसीदास जी की एक महान काव्य रचना है, जिसमें उन्होंने भगवान श्रीराम के प्रति अपनी गहरी भक्ति, विनम्रता और आत्मसमर्पण को व्यक्त किया है। इस ग्रंथ में तुलसीदास जी ने अपनी भावनाओं को बहुत ही सरल, हृदयस्पर्शी और सजीव भाषा में प्रस्तुत किया है। इसे हिंदी साहित्य में भक्ति काव्य का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।
विनयपत्रिका में कुल 279 पद हैं, जिनमें तुलसीदास जी ने भगवान श्रीराम के चरणों में अपनी विनम्रता और प्रेम भरे निवेदन किए हैं। इस रचना में भक्त भगवान से विभिन्न रूपों में विनय करते हैं, अपने पापों के लिए क्षमा माँगते हैं, जीवन की कठिनाइयों में प्रभु का सहारा चाहते हैं और उनके कृपा-कटाक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं।
इस ग्रंथ के कुछ विशेष पहलू:
1. विनय और आत्मसमर्पण: तुलसीदास जी अपने अहंकार को त्यागकर भगवान के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए हैं और उनके चरणों में विनय करते हैं।
2. प्रार्थना और कष्टों का वर्णन: जीवन के कष्टों, दुखों और मोह-माया की कठिनाइयों को ईश्वर की कृपा से दूर करने की प्रार्थना करते हैं।
3. भक्ति की गहराई: इसमें राम भक्ति की गहनता और ईश्वर से अनुराग का अत्यधिक मार्मिक वर्णन है।
4. मानवता और दीनता का बोध: विनयपत्रिका में तुलसीदास ने इस संसार के मोह, माया और क्षणभंगुरता का बोध करवाया है और बताया है कि सच्चा सुख प्रभु की भक्ति में ही है।
प्रसिद्ध पंक्तियाँ:
"मति भेद देखि ब्याकुल चित, प्रभु! मैं बाँह पकड़ि लेहु।
बिनु स्नेह के करि करुणा मय, मोहि अपनाय लेहु॥"
विनयपत्रिका भक्ति की उस पराकाष्ठा को दिखाती है, जहाँ भक्त अपने आराध्य के सामने पूर्ण रूप से विनम्र, समर्पित और अहंकारविहीन होकर खड़ा रहता है। इसे पढ़ने और मनन करने से व्यक्ति के भीतर भक्ति का संचार होता है और हृदय में भगवान श्रीराम के प्रति गहरी श्रद्धा उत्पन्न होती है।
यह पुस्तक गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित हुई, मिल जाएगी।