वेद व्यास जी के जन्म की कथा आपने शायद ही सुनी होगी, आज हम आपको बता रहे हैं कि महर्षि वेद व्यास जी के माता पिता कौन थे और उनके जन्म के साथ क्या घटित हुआ था।
उनकी माता का नाम सत्यवती था,
सत्यवती एक मछुआरे की पुत्री थीं इसलिए सत्यवती को "मत्स्यगंधा" के नाम से भी जानते हैं क्योंकि उनके शरीर से मछली की गंध जैसी महक आती थी। एक समय की बात है एक बार हस्तिनापुर के राजा शांतनु गंगा किनारे शिकार करने गए थे, जहाँ पर उन्होंने सत्यवती को देखा और उनसे विवाह करने की अपनी इच्छा जताई।
सत्यवती ने अपने पिताजी से मिलवा कर राजा का परिचय कराया,
सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु से एक शर्त रखी कि सत्यवती की संतान ही हस्तिनापुर के राजा बनेगी। इस शर्त के कारण शांतनु बहुत दुखी हुए।
राजा शांतनु वापस लौट आए लेकिन, जब गंगा पुत्र भीष्म को यह बात पता चली, तो उन्होंने अपनी राजगद्दी छोड़ने और आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने की प्रतिज्ञा ली।
गंगा पुत्र भीष्म के पिता राजा शांतनु ही थे।
भीष्म के इस महान बलिदान से सत्यवती के पिता सहमत हो गए और सत्यवती का विवाह हस्तिनापुर राजा शांतनु से हो गया।
अब सत्यवती और राजा शांतनु खुशी से हस्तिनापुर में रहने लगे।
कुछ साल बाद सत्यवती से राजा शांतनु के दो पुत्र हुए—चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद युद्ध में मारा गया और विचित्रवीर्य संतानहीन रह गया।
बाद में, सत्यवती ने महर्षि वेद व्यास जी के माध्यम से नियोग प्रथा द्वारा धृतराष्ट्र और पांडु को जन्म दिलवाया, जिससे आगे चलकर महाभारत का युद्ध हुआ।
तो इस प्रकार, सत्यवती महाभारत की एक महत्वपूर्ण पात्र बनी , अब बात करते हैं महर्षि वेद व्यास जी के जन्म गाथा को।
महर्षि वेदव्यास का जन्म महाभारत के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों में से एक है।
महर्षि वेद व्यास जी भी सत्यवती के पुत्र थे।
और पिता महर्षि पराशर के पुत्र थे। वेद व्यास जी का जन्म एक द्वीप पर हुआ था, इसलिए उन्हें "द्वैपायन" भी कहा जाता है।
वेदव्यास का जन्म कथा इस प्रकार है,
सत्यवती एक मछुआरे की पुत्री थीं इसलिए युवावस्था में नाव चलाने का कार्य करती थीं।
एक दिन, जब सत्यवती नाव चला रही थीं, तभी महर्षि पराशर वहाँ आए।
वे सत्यवती के दिव्य रूप से प्रभावित हुए और सत्यवती से एक पुत्र की इच्छा व्यक्त की। सत्यवती ने कहा कि यदि ऐसा होता है, तो उनकी पवित्रता और समाज में उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँच जाएगी।
तब महर्षि पराशर ने सत्यवती को आशीर्वाद दिया कि इस घटना के बाद भी वे कुँवारी बनी रहेंगी और उनके शरीर से मछली की गंध दूर होकर एक दिव्य सुगंध आने लगेगी। इसके बाद सत्यवती ने हामी भरी तो, समागम हुआ और सत्यवती ने एक पुत्र को जन्म दिया, जो जन्म के तुरंत बाद ही बड़ा हो गया और तपस्या करने चला गया।
यही बालक आगे चलकर वेदव्यास कहलाया था।
महर्षि वेदव्यास भारतीय संस्कृति और धर्म में एक महान ऋषि माने जाते हैं, जिनका योगदान वेदों, पुराणों और महाभारत के रूप में अविस्मरणीय है।