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बुधवार, नवंबर 06, 2024

शनि और हनुमान जी की कहानी


शनि देव और हनुमान जी की कहानी प्राचीन हिंदू ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में बताई गई है, जो शनि देव के जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना को दर्शाती है। कथा के अनुसार, जब हनुमान जी श्री राम की सेवा में राक्षसों के साथ युद्ध कर रहे थे, तब शनि देव ने उन्हें चुनौती देने की कोशिश की।

यह कहानी मुख्यतः उस समय की है जब हनुमान जी लंका में थे। हनुमान जी ने रावण की अशोक वाटिका में सीता माता का पता लगाया था और उनकी मदद के लिए आए थे। इसी दौरान, शनि देव ने यह निर्णय लिया कि वे हनुमान जी की परीक्षा लेंगे।

शनि देव ने हनुमान जी से कहा कि वे उन्हें चुनौती देना चाहते हैं, और अगर वे उनके शनि दृष्टि का प्रभाव सहन कर सकते हैं, तो वे उनकी शक्ति को स्वीकार कर लेंगे। परंतु हनुमान जी ने विनम्रता से कहा कि वे श्री राम के कार्य में व्यस्त हैं और इस समय उन्हें कोई भी बाधा नहीं चाहिए।

जब शनि देव ने आग्रह किया और हनुमान जी के ऊपर अपनी दृष्टि डालने का प्रयास किया, तो हनुमान जी ने उन्हें अपनी पूंछ में लपेट लिया और चारों ओर घुमाना शुरू कर दिया। हनुमान जी ने शनि देव को इतना घुमाया कि उन्हें बहुत पीड़ा हुई। तब शनि देव ने हनुमान जी से क्षमा मांगी और कहा कि वे उनकी शक्ति को स्वीकार करते हैं और उनसे कोई भी शत्रुता नहीं करेंगे।

इस पर हनुमान जी ने शनि देव को छोड़ दिया, और शनि देव ने वचन दिया कि वे उन भक्तों को कष्ट नहीं देंगे जो हनुमान जी की भक्ति करते हैं। इसीलिए, आज भी यह माना जाता है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करता है या हनुमान जी की पूजा करता है, उसे शनि की दृष्टि से कष्ट नहीं होता।

शनि और हनुमान जी के बीच की कथा भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस कथा के अनुसार, जब हनुमान जी शनि देव की परीक्षा लेने के लिए गए, तो उन्होंने शनि की दृष्टि से बचने के लिए अपनी पूंछ को घुमाया, जिससे शनि को उनके साथ कोई शत्रुता नहीं करने का वचन देना पड़ा। इस घटना से यह सिखने को मिलता है कि भक्ति और निष्ठा से बड़े से बड़े संकट टाले जा सकते हैं। हनुमान जी की भक्ति से शनि की दृष्टि का प्रभाव कम होता है।

यह कथा हमें यह संदेश देती है कि भगवान की भक्ति और सच्ची निष्ठा से बड़े से बड़े संकट टाले जा सकते हैं।


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