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रविवार, फ़रवरी 09, 2025

मृत्यु के देवता धर्मराज यम yamraj



दोस्तों ,
यमराज हिंदू धर्म में मृत्यु के देवता और न्यायाधीश माने जाते हैं। उन्हें धर्मराज के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि वे धर्म के आधार पर लोगों को उनके कर्मों का न्यायोचित फल देते हैं। यमराज का वर्णन कई प्राचीन ग्रंथों, पुराणों, और वेदों में मिलता है। उन्हें मृत्युलोक (पृथ्वी) और यमलोक के स्वामी के रूप में जाना जाता है, जहां वे मृत्यु के बाद जीवात्माओं का न्याय करते हैं।

यमराज की उत्पत्ति और परिवार: यमराज को सूर्य देव और संज्ञा (या संध्या) के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। उनकी बहन यमुनाजी हैं, जिनका नदी के रूप में अत्यधिक धार्मिक महत्व है। यमराज और यमुना का रिश्ता विशेष रूप से भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है, और उनकी इस कथा से यम द्वितीया (भाई दूज) पर्व मनाया जाता है।

यमराज का कार्य और न्याय का सिद्धांत: यमराज का मुख्य कार्य प्राणियों की मृत्यु के बाद उनके कर्मों का हिसाब-किताब करना है। वह यमलोक में अपनी सभा लगाते हैं, जहाँ उनके सहायक चित्रगुप्त प्रत्येक जीव के कर्मों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं। यमराज धर्म और कर्म के आधार पर आत्माओं का न्याय करते हैं और उन्हें स्वर्ग, नरक, या पुनर्जन्म में भेजते हैं। उनके निर्णय कर्मों पर आधारित होते हैं, और इसलिए वे एक निष्पक्ष और न्यायप्रिय देवता माने जाते हैं।

यमराज का स्वरूप: यमराज का स्वरूप गम्भीर और शक्तिशाली होता है। उन्हें सामान्यतः हरे या काले रंग के परिधान में दिखाया जाता है, और उनके सिर पर मुकुट होता है। वे मूसल (गदा) और पाश (रस्सी) लेकर चलते हैं, जो आत्माओं को पकड़ने और न्याय का प्रतीक हैं। उनका वाहन भैंसा (महिष) है, जो स्थिरता और गंभीरता का प्रतीक है।

यमराज का पौराणिक महत्व: यमराज का उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों में है। महाभारत, पुराणों, और अन्य शास्त्रों में उनकी कथाएँ और उनका धर्म का पालन करने का संदेश मिलता है। उनके नियम और धर्म पालन के सिद्धांत हमें सिखाते हैं कि जीवन में धर्म और कर्म का विशेष महत्व है, और मृत्यु के बाद हम अपने कर्मों का फल अवश्य पाते हैं।

यमराज की पूजा और मान्यता: हालाँकि यमराज की पूजा आमतौर पर नहीं की जाती, लेकिन लोग उन्हें मृत्यु के बाद अपने कर्मों के फल के प्रति सचेत करते हैं। भाई दूज के दिन उनकी बहन यमुनाजी की पूजा के माध्यम से यमराज को भी सम्मानित किया जाता है, और इस दिन भाई-बहन के रिश्ते का पवित्र पर्व मनाया जाता है।
अन्य जानकारी पढ़िए हमारी अगली पोस्ट में।


मंगलवार, जनवरी 07, 2025

मंगल ग्रह और दोष



दोस्तों,
मंगल देव हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवता, जिन्हें भौम भी कहा जाता हैं और नवग्रहों में से एक हैं। उन्हें शक्ति, ऊर्जा, साहस, पराक्रम और भूमि का देवता माना जाता है। मंगल देव को ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, और वे जीवन में साहस, आत्मविश्वास और संघर्ष की क्षमता प्रदान करते हैं।
मंगल देव की उत्पत्ति का वर्णन विभिन्न पुराणों में मिलता है।

प्रमुख कथा के अनुसार, मंगल देव का जन्म भगवान शिव के पसीने से हुआ। जब शिव जी तपस्या कर रहे थे, तो उनकी कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिरीं, और उनसे मंगल देव का जन्म हुआ। इसलिए उन्हें "भूमिपुत्र" कहा जाता है।

मंगल देव को शिव और पार्वती का पुत्र भी माना जाता है।


मंगल देव का वर्ण (रंग) लाल है।

वे लाल वस्त्र पहनते हैं और उनके वाहन भेड़िया या भेड़ है।

उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें त्रिशूल, गदा, कमल और वर मुद्रा होती है।


मंगल ग्रह साहस, ऊर्जा, भूमि, संपत्ति, और भाइयों का कारक है।

मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है तथा मकर राशि में उच्च और कर्क राशि में नीच होता है।

शुभ मंगल व्यक्ति को साहसी, परिश्रमी और संपन्न बनाता है। अशुभ मंगल के कारण व्यक्ति को गुस्सा, विवाद, और भूमि संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।


मंगल देव की पूजा मंगलवार के दिन की जाती है।

मंगल दोष (मांगलिक दोष) से बचने के लिए लोग हनुमान जी की पूजा करते हैं।

मंगल ग्रह की शांति के लिए लाल वस्त्र पहनना, मसूर की दाल, गुड़, और तांबे का दान करना शुभ माना जाता है।

मंगल मंत्र:

ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः


यदि कुंडली में मंगल ग्रह अशुभ स्थान पर हो, तो इसे "मंगल दोष" या "मांगलिक दोष" कहते हैं।

यह वैवाहिक जीवन में बाधा उत्पन्न कर सकता है। इसके समाधान के लिए विशेष पूजा और मंगल ग्रह की शांति के उपाय किए जाते हैं।

मंगल देव को वीरता और युद्ध के देवता माना जाता है।

वे धर्म और न्याय के रक्षक हैं और बुराई के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक हैं।

उनके प्रभाव से व्यक्ति में ऊर्जा, साहस, और नेतृत्व क्षमता बढ़ती है।


मंगल देव की पूजा से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक शक्ति प्राप्त होती है, भूमि और संपत्ति संबंधी समस्याओं का समाधान होता है और वैवाहिक जीवन में शांति आती है।
मंगल वार को भूमि पर कोई गढ्ढा खोदना अशुभ माना जाता हैं।
हिंदू धर्म की अन्य जानकारी पढ़िए हमारी अगली पोस्ट पर क्लिक करें 

बुध ग्रह और फल



दोस्तों,
बुध देव हिंदू धर्म में प्रमुख नवग्रहों में से एक माना गया हैं। बुध को बुद्धिमत्ता, वाणी, तर्कशक्ति, व्यापार, गणित और ज्योतिष का देवता माना जाता है। वे भगवान श्री विष्णु जी के भक्त और चंद्रमा (चंद्र देव) और तारा ( देव गुरु बृहस्पति की पत्नी) के पुत्र हैं। बुध ग्रह का ज्योतिषीय महत्व भी अत्यधिक है और इसे विद्या, संवाद, और सौम्यता का कारक माना जाता है।
बुध का जन्म चंद्र देव और बृहस्पति की पत्नी तारा के संयोग से हुआ। इसके कारण उन्हें चंद्रमा का पुत्र कहा जाता है।
उनकी उत्पत्ति को लेकर पुराणों में कई कथाएं मिलती हैं।

बुध देव का वर्ण (रंग) हरा बताया गया है।

वे हरे रंग के वस्त्र धारण करते हैं और उनके वाहन सिंह या रथ है, जिसे आठ घोड़े खींचते हैं।

उनके हाथों में तलवार, गदा, और ढाल होती है और वे वर मुद्रा में होते हैं।

बुध कुंडली में बुद्धिमत्ता, संवाद, तर्कशक्ति, और व्यापार का प्रतीक है।

बुध मीन राशि में नीच और कन्या राशि में उच्च होता है।

बुध की स्थिति यदि शुभ हो तो व्यक्ति बुद्धिमान, वाक्पटु और व्यापार में कुशल होता है। अगर यह अशुभ हो तो वाणी में दोष, शिक्षा में बाधा, और आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

बुध देव की कृपा पाने के लिए बुधवार के दिन उनकी पूजा की जाती है।

हरे रंग के वस्त्र पहनना, हरे मूंग का दान करना, और बुध मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।

बुध मंत्र:

ॐ बुधाय नमः


बुध देव को वाणी का स्वामी कहा जाता है, इसलिए संवाद और लेखन कार्य में उनकी पूजा की जाती है।

बुध का संबंध भगवान विष्णु से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि वे भी बुध ग्रह के अधिपति हैं।


बुध देव की पूजा जीवन में ज्ञान, तर्क, और सफलता लाने के लिए की जाती है। उनकी कृपा से व्यक्ति जीवन के कई कठिनाईयों से उबर सकता है।
अन्य ग्रह और हिंदू धर्म की अधिक जानकारी के लिए हमारी अगली पोस्ट पढ़ते हुए आगे बढ़ सकते हैं।

शुक्रवार, नवंबर 29, 2024

केतु ग्रह कौन है? ketu grah aur Shanti


दोस्तों,
केतु हिंदू ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण छाया ग्रह माना जाता है। यह राहु की तरह एक छाया ग्रह है, जिसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है। ज्योतिष में केतु को रहस्यमय, मोक्षदायक, और आध्यात्मिक ग्रह के रूप में जाना जाता है। इसे ज्ञान, वैराग्य, और आध्यात्मिकता का कारक माना जाता है, और इसका प्रभाव व्यक्ति के मानसिक और आध्यात्मिक विकास पर पड़ता है।

केतु की उत्पत्ति की कथा

केतु का संबंध राहु से है, और दोनों का उत्पत्ति का वर्णन समुद्र मंथन की कथा में मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण करके देवताओं को अमृत बांटने का निश्चय किया। स्वरभानु नामक एक असुर ने देवताओं का वेश धारण कर अमृत पी लिया, लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया। इसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर और धड़ अलग कर दिया। उसके सिर को राहु और धड़ को केतु के रूप में जाना गया।

केतु का स्वरूप

केतु का स्वरूप रहस्यमय और अर्ध-दैवीय माना जाता है। केतु को अक्सर एक धड़ या सर्प के रूप में दिखाया जाता है, जिसमें सिर नहीं होता। इसे धड़-विहीन छाया ग्रह माना जाता है, और इसके प्रभाव को रहस्यमय और कभी-कभी अप्रत्याशित माना जाता है।

ज्योतिष में केतु का महत्व

ज्योतिष में केतु का स्थान व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिकता, वैराग्य, और मुक्ति के मार्ग पर प्रभाव डालता है। इसे मोक्ष का कारक ग्रह कहा गया है। केतु का प्रभाव व्यक्ति के आंतरिक विकास, ध्यान, और ध्यान के प्रति झुकाव को बढ़ाता है। यह व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर जीवन को गहराई से समझने की प्रेरणा देता है।

केतु के निम्नलिखित प्रभाव होते हैं:

आध्यात्मिकता: यह व्यक्ति को आंतरिक शांति और आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।

वैराग्य: केतु के प्रभाव में व्यक्ति सांसारिक सुखों से विमुख होकर मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है।

अचानक घटनाएं: कभी-कभी केतु अप्रत्याशित घटनाएं भी लाता है, जिससे जीवन में अचानक बदलाव आ सकते हैं।

ज्ञान और रहस्य: यह ग्रह गहरे ज्ञान और रहस्यों का प्रतीक है। यह व्यक्ति को छिपे हुए या रहस्यमयी ज्ञान की ओर आकर्षित कर सकता है, जैसे कि ज्योतिष, तंत्र, या आध्यात्मिक साधना।


केतु के उपाय और पूजन

केतु के नकारात्मक प्रभाव को कम करने और इसके सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाने के लिए कई उपाय किए जाते हैं। इन उपायों में केतु मंत्रों का जाप, धूप, और उपासना शामिल हैं। शनिवार के दिन काले वस्त्र, काले तिल, सरसों का तेल, और दान के माध्यम से केतु की शांति के लिए उपाय किए जा सकते हैं। इसके अलावा ध्यान, योग, और मंत्र जाप भी केतु के प्रभाव को शांत करने में सहायक होते हैं।
केतु का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में मानसिक शांति, आत्मज्ञान, और गहरे आध्यात्मिक अनुभव ला सकता है।
धन्यवाद 

विशिष्ट पोस्ट

संत रामानंद जी महाराज के शिष्य

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