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सोमवार, जनवरी 06, 2025

राहु काल और दोष क्या होता हैं।


दोस्तों,
राहु हिंदू ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण ग्रह और देवता माने जाते हैं, जिन्हें छाया ग्रह के रूप में जाना जाता है। राहु का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है; यह एक छाया ग्रह है जो सूर्य और चंद्रमा के साथ संपर्क में आने पर ग्रहण जैसी घटनाओं का कारण बनता है। राहु का प्रभाव रहस्यमय, अप्रत्याशित, और कभी-कभी अशुभ भी माना जाता है। इसलिए, इसे आमतौर पर ज्योतिष में सावधानी के साथ देखा जाता है।
राहु की उत्पत्ति की कथा: राहु का वर्णन समुद्र मंथन की कथा में मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तो भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं को अमृत देना शुरू किया। एक दानव, जिसे स्वरभानु कहा जाता था, ने देवताओं का वेश धारण करके अमृत पी लिया। लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और इस बात का संकेत दिया। विष्णु जी ने तुरंत अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर और धड़ अलग कर दिया। अमृत पीने के कारण वह मर नहीं सका और उसका सिर "राहु" के रूप में जाना गया, जबकि धड़ "केतु" के रूप में।
राहु का स्वरूप: राहु का स्वरूप मुख्य रूप से धड़-विहीन सिर के रूप में होता है, जो एक काले रंग का ग्रह माना जाता है। वह सांप की तरह दिखने वाला है और उसका असर अक्सर अप्रत्याशित और रहस्यमयी होता है। राहु को छाया ग्रह के रूप में देखा जाता है और यह ग्रहण जैसी घटनाओं का कारण बनता है।

ज्योतिष में राहु का महत्व: ज्योतिष के अनुसार, राहु का प्रभाव मानव जीवन में रहस्यमय, भ्रामक, और अचानक परिवर्तनों का संकेतक होता है। इसे ग्रहण, भ्रम, और नकारात्मकता का प्रतिनिधि माना जाता है। कुंडली में राहु की स्थिति व्यक्ति के जीवन में बड़े उतार-चढ़ाव ला सकती है, जैसे कि अचानक लाभ या हानि, विदेश यात्रा, अप्रत्याशित घटनाएं आदि। राहु का प्रभाव जहां व्यक्ति को भ्रमित और भटकाने वाला होता है, वहीं कभी-कभी यह व्यक्ति को अप्रत्याशित रूप से सफलता और प्रसिद्धि भी दिला सकता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो रहस्यमय या अप्रचलित होते हैं।
राहु का उपाय और पूजन: राहु के प्रभाव को संतुलित करने के लिए लोग विभिन्न उपाय करते हैं, जैसे राहु ग्रह के लिए विशेष मंत्रों का जाप करना, राहु की पूजा करना, और शनिवार या राहु काल में काले तिल, काले वस्त्र, और सरसों के तेल का दान करना। राहु का उपाय करने से उसके नकारात्मक प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है। साथ ही राहु के सकारात्मक गुणों, जैसे साहस, दृढ़ता, और नेतृत्व क्षमता को उभारने के प्रयास किए जाते हैं।
और सभी नौ ग्रहों के बारे जानने के हमारी पुरानी पोस्ट जरुर पढ़ें।

भद्रा काल क्या होता हैं।


दोस्तों,
भद्रा हिंदू ज्योतिष और पंचांग में एक विशेष अवधारणा है, जिसे शुभ और अशुभ मुहूर्त में महत्वपूर्ण माना जाता है। भद्रा को काल का एक विशेष अंग माना जाता है, जो अशुभ और बाधक मानी जाती है। इसलिए, जब भद्रा काल होती है, तब कई धार्मिक और मांगलिक कार्यों को करने से बचा जाता है। विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य शुभ कार्यों को भद्रा के समय में करने की मनाही है।

भद्रा का संबंध काल और ज्योतिष से: भद्रा का उल्लेख पंचांग में किया जाता है। भद्रा काल को शुभ समय नहीं माना जाता, और ज्योतिष के अनुसार, इस समय पर किए गए कार्यों में विघ्न, बाधा, और अशांति की संभावनाएँ होती हैं। भद्रा काल हर दिन अलग-अलग समय पर आता है, और यह चंद्रमा की स्थिति और नक्षत्रों पर निर्भर करता है।

भद्रा के प्रकार: भद्रा के दो प्रकार माने जाते हैं:

1. पाताल भद्रा: यह पृथ्वी के नीचे मानी जाती है और इसका प्रभाव मुख्यतः नकारात्मक होता है। इसे अधिक अशुभ माना गया है।


2. स्वर्गीय भद्रा: यह पृथ्वी के ऊपर मानी जाती है और इसे तुलनात्मक रूप से कम अशुभ माना जाता है।



भद्रा का प्रतीक और उसका स्वरूप: पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन मानी जाती हैं।
 उन्हें अशुभ कार्यों की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि उनकी दृष्टि जहां पड़ती है, वहां कुछ न कुछ बाधाएं उत्पन्न होती हैं। भद्रा को एक दिव्य शक्ति के रूप में भी देखा जाता है जो अशुभ और बाधक ऊर्जा का प्रतीक है।

भद्रा काल का प्रयोग और महत्व: पंचांग के अनुसार, भद्रा के समय पर मांगलिक कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है। विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य शुभ कार्य भद्रा काल में वर्जित होते हैं। हालांकि, कुछ कार्य, जैसे तंत्र साधना, दान, और शुभ संकल्प, इस समय में किए जा सकते हैं। भद्रा काल को समाप्त होने के बाद ही शुभ कार्य करना उचित माना जाता है।
भद्रा का समय पंचांग में प्रतिदिन देखा जा सकता है, और यह समय हर दिन अलग-अलग होता है। इसलिए लोग इसे ध्यान में रखते हुए अपने कार्यों की योजना बनाते हैं, ताकि शुभ कार्यों में बाधा न आए।
आशा है कि आप भद्रा काल के बारे में अच्छे से जान गए होंगे, हमें कमेंट बॉक्स मे जय श्रीराम लिख कर भेजें।

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