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बुधवार, नवंबर 06, 2024

भक्त नानी बाई नगर अंजार


दोस्तों, नानी बाई राजस्थान के भक्ति साहित्य और लोक कथाओं में एक विशेष स्थान रखती हैं, विशेषकर "नानी बाई का मायरा" के संदर्भ में।
 "नानी बाई का मायरा" एक प्रसिद्ध कथा है जो मीरा बाई के समय की मानी जाती है, और इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति के चमत्कार और उनके द्वारा निभाई गई लाज का मार्मिक चित्रण किया गया है।

नानी बाई का मायरा की कथा

"नानी बाई का मायरा" कथा का आधार यह है कि नानी बाई नामक एक भक्त लड़की का विवाह तय होता है, और परंपरा के अनुसार, लड़की के पिता को मायरा (शादी में देने के लिए विशेष दान और उपहार) भरना होता है। इस कथा के अनुसार, नानी बाई के पिता गरीब और भक्त व्यक्ति होते हैं और उनके पास मायरे के लिए धन नहीं होता है। समाज में अपमान से बचने के लिए और अपनी बेटी का सम्मान बनाए रखने के लिए वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में जाते हैं और प्रार्थना करते हैं।

नानी बाई के पिता जी श्रीकृष्ण के सच्चे भक्त थे, और उन्होंने उनसे मदद की आशा में प्रार्थना की। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं मायरा भरने का निर्णय लिया। श्रीकृष्ण ने सजी-धजी बारात के साथ अद्भुत भव्यता से मायरे के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँ दीं। वे सोने, चाँदी, हीरे, और रत्नों से भरी गठरी लेकर आए और धूमधाम से नानी बाई का मायरा भरा।

नानी बाई का मायरा का महत्व

"नानी बाई का मायरा" कथा भक्ति, समर्पण और भगवान पर अटूट विश्वास का प्रतीक है। यह कथा बताती है कि सच्चे भक्तों की लाज भगवान स्वयं रखते हैं। राजस्थान , गुजरात और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में इस कथा का मंचन किया जाता है और इसे गीतों के माध्यम से भी प्रस्तुत किया जाता है। विशेष अवसरों पर इस कथा का गायन भक्ति के रूप में होता है और इसे गाने वाले भक्त भगवान की महिमा और उनकी कृपा का वर्णन करते हैं।
 भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों पर विशेष प्रेम और उनकी भक्ति के प्रति उनकी जिम्मेदारी का प्रतीक है। यह कथा आज भी भक्तों को भगवान में विश्वास रखने और उनकी भक्ति में अडिग रहने की प्रेरणा देती है।
नानी बाई गुजरात के प्रसिद्ध संत और कृष्ण भक्त नरसी मेहता की बेटी थीं। नरसी मेहता (जिन्हें नरसी भगत भी कहा जाता है) का जीवन भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और उनके प्रति अनन्य प्रेम का उदाहरण है।
नरसी मेहता एक निर्धन और भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी, लेकिन वे कृष्ण में असीम श्रद्धा रखते थे। जब उनकी बेटी नानी बाई का विवाह तय हुआ, तो उन्हें विवाह के रीति-रिवाजों के अनुसार "मायरा" भरना था। मायरा में उपहार, गहने, कपड़े आदि शामिल होते हैं, जिन्हें बेटी के विवाह में देने की परंपरा होती है। लेकिन नरसी मेहता इतने गरीब थे कि उनके पास इस मायरे को भरने के लिए साधन नहीं थे। इस परिस्थिति में, उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की और उन पर अपना भरोसा बनाए रखा।

नरसी मेहता की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी लाज रखी और स्वयं गोकुल से द्वारिका तक मायरा भरने के लिए आए। कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने अद्भुत वैभव के साथ मायरे की सभी आवश्यकताओं को पूरा किया। सोने-चाँदी के आभूषण, रत्न, वस्त्र और सभी प्रकार के उपहार भगवान स्वयं अपने दिव्य रूप में लाकर मायरा भरे और इस प्रकार नरसी मेहता की पुत्री नानी बाई का विवाह संपन्न हुआ।

"नानी बाई का मायरा" कथा भक्तों के बीच यह संदेश देती है कि सच्चे भक्त की सहायता भगवान स्वयं करते हैं और उसकी लाज कभी नहीं जाने देते।
यह कथा आज भी भक्ति और समर्पण का प्रतीक मानी जाती है और गुजरात, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में बड़े प्रेम और श्रद्धा के साथ गाई जाती है।
तो कमेंट बॉक्स मे जय श्री कृष्ण लिखिए और अगली पोस्ट पर जाकर अन्य जानकारी पढ़िए।

सोमवार, नवंबर 04, 2024

संत नरसी मेहता की हुंडी

दोस्तों आज आप जानेंगे सेठ नरसी जी मेहता से कृष्ण भक्त बने नरसी जी की एक प्यारी कथा के बारे जो 
"नरसी मेहता की हुंडी" एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है आइए इस कथा को विस्तार से समझते हैं।
 संत नरसी मेहता की कृष्ण भक्ति और भगवान श्रीकृष्ण के अपने भक्तों के प्रति अनन्य प्रेम और कृपा का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है।
 इस कथा में यह दर्शाया गया है कि सच्चे भक्त के प्रति भगवान का कैसा भाव रहता है और वह कैसे अपने भक्त की लाज रखता है।

कथा का सारांश

संत नरसी मेहता भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे, लेकिन वे आर्थिक रूप से बहुत गरीब थे।
 एक बार, उन्हें किसी विशेष कार्य के लिए पैसे की आवश्यकता थी, और मदद के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं था।
 तब उन्होंने अपने ईश्वर, भगवान श्रीकृष्ण पर विश्वास रखते हुए भगवान के नाम पर "हुंडी" (एक प्रकार का वचन पत्र जो उस समय का वित्तीय लेनदेन का साधन था) लिख दी। इस हुंडी में यह लिखा था कि यह हुंडी देने वाले को धन का भुगतान भगवान स्वयं करेंगे।

यह हुंडी नरसी मेहता ने एक व्यापारी को दी। व्यापारी ने हुंडी देखकर सोचा कि यह किसी गरीब आदमी का मजाक है, क्योंकि भगवान कैसे किसी को पैसा दे सकते हैं! फिर भी, वह हुंडी लेकर द्वारका गया, जहाँ भगवान कृष्ण का मंदिर स्थित है।
 वहां व्यापारी ने इस हुंडी को भगवान के सामने रखा और कहा कि उसे इसका भुगतान चाहिए।

भगवान श्रीकृष्ण का चमत्कार

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्त नरसी मेहता की लाज रखते हुए उस व्यापारी को चमत्कारिक रूप से हुंडी की पूरी राशि का भुगतान किया।
 कहा जाता है कि स्वयं भगवान ने किसी माध्यम से उसे धन प्रदान किया।
 इस प्रकार, वह व्यापारी यह देखकर दंग रह गया कि नरसी मेहता का विश्वास और भक्ति वास्तविक थे।

कथा का संदेश


"नरसी मेहता की हुंडी" कथा में भक्ति, विश्वास, और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण का संदेश है। 
यह कथा सिखाती है कि यदि हमारी भक्ति सच्ची और निष्कपट हो, तो भगवान हमारी सहायता अवश्य करते हैं और हर संकट में हमारे साथ खड़े रहते हैं। 
नरसी मेहता का यह विश्वास था कि भगवान श्रीकृष्ण उनकी हर समस्या का समाधान करेंगे, और उनका यही अटूट विश्वास इस कथा का आधार बना।

इस कथा का आयोजन भी कई जगहों पर किया जाता है और इसे भक्ति गीतों, नाटकों और कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
आपके वहां पर नरसी भक्त की कौनसी कथा ज्यादा फैमस हैं, हमे कमेंट बॉक्स में बताएं ताकि हम अगली पोस्ट में विस्तार से जानकारी देने की कोशिश करेंगे।

भक्त नरसी मेहता

दोस्तों आप जानेंगे कि इस कहानी में हम जूनागढ़ के एक भक्त की जीवन यात्रा,
संत नरसी मेहता गुजरात के महान भक्त कवि और संत थे, 
 उनका जन्म 15वीं शताब्दी में गुजरात के तलाजा या जूनागढ़ में हुआ था। 
नरसी मेहता भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे, और उनका जीवन कृष्ण भक्ति, प्रेम, करुणा और समाज सुधार की प्रेरणा से परिपूर्ण था।

उनकी रचनाओं में भक्ति और प्रेम के सुंदर भाव व्यक्त होते हैं। उनके गीत और भजन सामाजिक समानता और मानवता के आदर्शों को दर्शाते हैं। 
"वैष्णव जन तो तेने कहिए" गीत में उन्होंने यह संदेश दिया कि सच्चा वैष्णव वही है जो दूसरों के दुःख को महसूस करता है, बिना अभिमान के सेवा करता है, और हमेशा सत्य व करुणा के मार्ग पर चलता है।

संत नरसी मेहता का जीवन कई चमत्कारी घटनाओं से भी जुड़ा हुआ माना जाता है, जिनमें भगवान कृष्ण की उनकी भक्ति के कारण उन पर कृपा की अनेक कहानियाँ प्रसिद्ध हैं।
नरसी मेहता की कृष्ण भक्ति गहरी और समर्पण से परिपूर्ण थी।
 उन्होंने अपने जीवन में भगवान श्रीकृष्ण को अपने आराध्य देव के रूप में माना और उनके प्रति अपार प्रेम और विश्वास प्रकट किया। 
उनकी भक्ति सरल, निष्कपट और पूर्ण समर्पण का प्रतीक थी, जो भक्तों के लिए आदर्श मानी जाती है। नरसी की कृष्ण भक्ति में कई पहलू देखने को मिलते हैं:

1. प्रेम और समर्पण की भक्ति

नरसी मेहता ने भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति में प्रेम और समर्पण का भाव प्रकट किया।
 उनके भजन और रचनाएँ भगवान के प्रति गहरे प्रेम और निष्ठा से भरी हुई हैं। 
वे मानते थे कि भगवान के प्रति प्रेम करना ही जीवन का सच्चा उद्देश्य है।

2. सुदामा चरित्र

नरसी मेहता की कृष्ण भक्ति में सुदामा चरित्र बहुत प्रसिद्ध है। 
उनके भजनों में सुदामा की निर्धनता के बावजूद भगवान कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति का वर्णन है, जो यह सिखाता है कि ईश्वर के प्रति भक्ति में धन-दौलत का कोई महत्व नहीं होता।

3. भगवान पर अटूट विश्वास

नरसी मेहता का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था, लेकिन हर परिस्थिति में उन्होंने भगवान कृष्ण पर अटूट विश्वास रखा। 
कई कथाएँ प्रचलित हैं कि जब वे किसी संकट में होते, तो भगवान कृष्ण उनकी सहायता करते। 
इसका उदाहरण उनके जीवन की घटनाओं में देखा जा सकता है, जैसे "हर माला प्रकरण", जिसमें भगवान ने उनके जीवन को चमत्कारिक रूप से संकटों से बचाया।

4. वैष्णव जन का संदेश

"वैष्णव जन तो तेने कहिए" उनके सबसे प्रसिद्ध भजनों में से एक है, जिसमें नरसी ने सच्चे भक्त का वर्णन किया है। उन्होंने इस भजन के माध्यम से यह संदेश दिया कि सच्चा कृष्ण भक्त वही है जो दूसरों के दुख को समझे, अभिमान त्यागे, और हमेशा दूसरों की मदद करे।

5. रासलीला और बाल लीला

नरसी मेहता की रचनाओं में भगवान की बाल लीला और रासलीला का सुंदर वर्णन है। 
उनके भजनों में भगवान के बाल रूप की भोली-भाली लीलाओं और गोपियों के साथ उनकी रासलीला का वर्णन बहुत ही सरल और मोहक ढंग से किया गया है, जिससे भक्तों का मन भगवान के प्रति जुड़ता है।

6. सामाजिक संदेश

नरसी की कृष्ण भक्ति में समाज सुधार की भावना भी समाहित थी।
 उन्होंने जाति-भेद और सामाजिक असमानताओं का विरोध किया।
 वे मानते थे कि हर व्यक्ति में भगवान का वास है, और भगवान का भक्त बनने के लिए समाज द्वारा बनाए गए भेदभाव को त्यागना आवश्यक है।
"नानी बाई का भात" एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा और लोककथा है जो संत नरसी मेहता और उनकी कृष्ण भक्ति से जुड़ी है।
 इस कथा में भगवान कृष्ण की अपने भक्तों के प्रति अनन्य कृपा और प्रेम का वर्णन है। यह कथा विशेष रूप से राजस्थान और गुजरात में प्रसिद्ध है, जहाँ इसे भक्ति भाव से प्रस्तुत किया जाता है।
 आइए जानते हैं इस कथा के मुख्य अंश:

कथा का सारांश

नरसी मेहता भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे, लेकिन वे आर्थिक रूप से बहुत गरीब थे।
 एक दिन, उनकी बेटी नानी बाई का विवाह हो गया, और उसके ससुराल वालों ने विवाह के बाद उसे विदा कराने के लिए भात (भात संस्कार, जो लड़की के पिता द्वारा ससुराल में किया जाता है) करने की मांग की।
 भात में लड़की के पिता को अपनी बेटी और उसके परिवार के लिए उपहार, भोजन और अन्य व्यवस्थाएँ करनी होती हैं।

हालाँकि, नरसी मेहता इतने गरीब थे कि उनके पास भात का आयोजन करने के लिए धन नहीं था। 
उनके पास न तो धन था, न ही संसाधन, जिससे वे इस सामाजिक जिम्मेदारी को निभा सकें। 
समाज के लोग उनका मजाक उड़ाने लगे और सोचने लगे कि वे अपनी बेटी के लिए भात का आयोजन नहीं कर पाएंगे।

भगवान कृष्ण की लीला

नरसी मेहता भगवान कृष्ण के समर्पित भक्त थे, और उन्होंने अपनी सारी चिंताओं को भगवान पर छोड़ दिया। उन्होंने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की कि वे उनकी लाज बचाएँ।

भगवान कृष्ण ने अपने भक्त की प्रार्थना सुन ली और चमत्कारिक रूप से सुदामा का रूप धारण करके नानी बाई के ससुराल में पहुँच गए।
 वहाँ उन्होंने स्वयं नरसी मेहता के नाम से भात की सभी व्यवस्थाएँ कीं।
 भगवान ने सभी अतिथियों के लिए भोजन, आभूषण, कपड़े और अन्य उपहारों की इतनी सुंदर व्यवस्था की कि नानी बाई का ससुराल पक्ष चकित रह गया।
 उन्होंने सोचा कि नरसी मेहता तो बहुत धनी व्यक्ति हैं।

कथा का संदेश

"नानी बाई का भात" कथा में भक्ति, प्रेम, और भगवान के प्रति अटूट विश्वास का संदेश है। 
यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति में शक्ति होती है, और यदि हमारी आस्था मजबूत हो, तो भगवान हमेशा हमारे साथ होते हैं। 
जब भक्त भगवान पर संपूर्ण विश्वास करता है, तो भगवान भी अपने भक्त की हर तरह से सहायता करते हैं, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।

इस कथा का आयोजन भारत के कई हिस्सों में भक्ति संगीत और नाटकों के रूप में किया जाता है, जिससे भक्तों में भगवान के प्रति प्रेम और विश्वास बढ़ता है। 
"नानी बाई का भात" आज भी भक्तों के बीच कृष्ण भक्ति का एक महान उदाहरण है।



निष्कर्ष

नरसी मेहता की कृष्ण भक्ति में प्रेम, समर्पण, विश्वास और करुणा का मिश्रण है।
 उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को अपना सखा, गुरु और आराध्य मानते हुए भक्ति की, और उनके भजनों ने लाखों लोगों को भक्ति और समाज में प्रेम और समानता का संदेश दिया। 
उनकी कृष्ण भक्ति आज भी भक्तों के लिए प्रेरणादायी है।
 नरसी मेहता के जीवन से आपको क्या शिक्षा मिलती हैं कमेंट बॉक्स मे जरूर बताएं और अन्य भक्तों, संतो की जीवन यात्रा को पढ़ने के लिए अगली पोस्ट पर क्लिक करें।



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