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मंगलवार, नवंबर 12, 2024

मीरा बाई का पत्र तुलसीदास जी को


दोस्तों, मीरा बाई और तुलसीदास जी की भक्ति के किस्से अद्भुत हैं, और उनकी भक्ति के प्रति गहरी निष्ठा ने उन्हें एक विशेष स्थान प्रदान किया। ऐसी कथा प्रचलित है कि मीरा बाई ने तुलसीदास जी को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति लोगों के विरोध और परिवार के दबाव के बारे में बताते हुए उनसे मार्गदर्शन मांगा था।

कहा जाता है कि मीरा बाई ने तुलसीदास जी को पत्र में लिखा:

 "गोसाईं जी, मेरे स्वजन, कुटुंब और ससुराल के लोग मुझे श्रीकृष्ण की भक्ति से दूर करना चाहते हैं। कृपया मुझे बताएं कि इस परिस्थिति में मुझे क्या करना चाहिए? मेरे मन में श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति का प्रेम गहरा है, लेकिन लोग मेरे मार्ग में बाधा बन रहे हैं।"


तुलसीदास जी, जो स्वयं भगवान राम के अनन्य भक्त थे, ने मीरा बाई को उत्तर में लिखा कि सच्चा भक्त कभी भी अपने मार्ग से विचलित नहीं होता। उन्होंने एक दोहे में उत्तर दिया:

> "जाके प्रिय न राम वैदेही,
तजिए ताहि कोटि बैरी सम, जो चाहे सुख देही।"



अर्थात, "जिस व्यक्ति को श्रीराम और सीता प्रिय नहीं हैं, उसे लाखों शत्रुओं के समान त्याग देना चाहिए, भले ही वह व्यक्ति सुख देने का वचन क्यों न दे।"

इस संदेश का आशय यह था कि भक्त को अपने ईश्वर-प्रेम के मार्ग में आने वाले किसी भी विरोध या दबाव से विचलित नहीं होना चाहिए, चाहे वह अपने ही परिवार या समाज से क्यों न हो। तुलसीदास जी ने इस उत्तर के माध्यम से मीरा बाई को प्रोत्साहित किया कि वे श्रीकृष्ण की भक्ति में स्थिर रहें और उनके प्रति अपने प्रेम को बनाए रखें।

यह पत्र मीरा बाई को प्रेरणा और आत्मबल देने वाला साबित हुआ। उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति में अपने समर्पण को और गहरा किया और समाज की परवाह किए बिना अपने आराध्य के प्रति पूर्ण निष्ठा के साथ जीवन बिताया।
अपने अंतिम समय में द्वारिका में अपने कृष्ण में समा गई।



सोमवार, नवंबर 11, 2024

तुलसीदास जी का राम मिलन Ram Milan Tulsidas ji



दोस्तों, तुलसीदास जी और भगवान राम के मिलन की कहानी भारतीय भक्ति साहित्य में एक अत्यंत प्रेरणादायक और रहस्यमय घटना मानी जाती है। तुलसीदास जी को राम के अनन्य भक्त और संत के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपना जीवन श्रीराम की भक्ति और साधना में समर्पित कर दिया था, और कहा जाता है कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान राम ने उन्हें दर्शन दिए थे। इस घटना के बारे में कई लोक कथाएँ प्रसिद्ध हैं, जिनमें से एक कथा निम्नलिखित है:

हनुमान जी के माध्यम से भगवान राम का दर्शन

कहा जाता है कि तुलसीदास जी काशी में रहकर राम कथा का प्रचार-प्रसार करते थे, लेकिन उनके मन में एक गहरी इच्छा थी कि वे स्वयं भगवान राम के दर्शन करें। एक दिन, हनुमान जी उनके पास साधारण वानर के रूप में आए और उनकी भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होकर उन्हें राम दर्शन का मार्ग दिखाया।

हनुमान जी ने तुलसीदास जी से कहा कि वे चित्रकूट में जाकर भगवान श्रीराम के दर्शन पा सकते हैं। तुलसीदास जी ने हनुमान जी की बात मानी और चित्रकूट की यात्रा की। वहाँ उन्होंने कई दिनों तक भगवान राम की भक्ति में ध्यानमग्न होकर साधना की। उनकी भक्ति और प्रेम से प्रसन्न होकर भगवान राम ने उन्हें चित्रकूट के घाट पर एक साधारण राजकुमार के रूप में दर्शन दिए। तुलसीदास जी ने भगवान राम को पहचान लिया और उनके चरणों में गिरकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।

भगवान राम का वर्णन

भगवान राम के दर्शन का वर्णन करते हुए तुलसीदास जी ने कहा कि रामचंद्रजी का स्वरूप अद्वितीय और दिव्य था। उनका तेज, सुंदरता, और शांति का भाव ऐसा था कि तुलसीदास जी के सारे कष्ट और मोह दूर हो गए। तुलसीदास जी ने भगवान राम को अपने सामने साक्षात देखा और उनकी भक्ति से ओत-प्रोत होकर उनके चरणों में अर्पित हो गए।

रामचरितमानस की रचना का प्रेरणास्त्रोत

भगवान राम के दर्शन के बाद तुलसीदास जी का जीवन पूर्ण रूप से परिवर्तित हो गया। इस दिव्य अनुभव से प्रेरित होकर उन्होंने "रामचरितमानस" की रचना की, जिसमें भगवान राम की संपूर्ण जीवन यात्रा और उनके आदर्शों का वर्णन किया गया। यह काव्य उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य बन गया और उन्होंने इसे भगवान राम के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक माना।

तुलसीदास जी और भगवान राम का विशेष संबंध

इस घटना ने तुलसीदास जी के जीवन में गहरा आध्यात्मिक परिवर्तन किया और भगवान राम के साथ उनके संबंध को और अधिक प्रगाढ़ बना दिया। भगवान राम का यह दर्शन तुलसीदास जी के लिए इतना महत्त्वपूर्ण था कि उन्होंने अपनी रचनाओं में सदैव इसे महसूस किया और अपनी भक्ति के माध्यम से इसे व्यक्त किया।

इस प्रकार, तुलसीदास जी और भगवान राम के मिलन की यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और प्रेम से भगवान की कृपा पाई जा सकती है। तुलसीदास जी का जीवन इस बात का प्रतीक है कि जब भक्ति निश्छल होती है, तो स्वयं भगवान अपने भक्त के समक्ष प्रकट हो जाते हैं।
आप भी अपनी भक्ति का भाव कमेंट में "जय श्री राम" लिख कर हमें भेजिए।


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