तुलसीदास लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
तुलसीदास लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, नवंबर 11, 2024

तुलसीदास जी की दोहावली tulsidas ji ki dohawali



 दोस्तों, दोहावली संत तुलसीदास जी की एक अद्वितीय रचना है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों, विचारों, और रामभक्ति का सुंदर तरीके से दोहे के माध्यम से वर्णन किया है। दोहावली में दोहा छंद का उपयोग किया गया है, जो तुलसीदास जी की गहन धार्मिकता, भक्ति, और नैतिक शिक्षाओं को सरल और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत करता है। इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे धर्म, भक्ति, सदाचार, प्रेम, ज्ञान, और समाज की स्थिति पर तुलसीदास जी के विचारों को व्यक्त किया गया है।

दोहावली की मुख्य विशेषताएँ:

1. सरल और प्रभावशाली भाषा: तुलसीदास जी ने दोहों में सरल, प्रवाहपूर्ण और मर्मस्पर्शी भाषा का प्रयोग किया है, जिससे उनके विचार सीधे पाठकों के हृदय में उतरते हैं।


2. जीवन के गूढ़ सत्य: इसमें जीवन के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, जैसे कि सांसारिक माया, मोह, अहंकार, मृत्यु, और सत्य का महत्व।


3. नैतिकता और सदाचार: दोहावली में तुलसीदास जी ने नैतिकता, सदाचार और जीवन के सच्चे मार्ग पर चलने का संदेश दिया है।


4. भक्ति और प्रेम का भाव: इसमें भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति और प्रेम का गहरा भाव प्रकट होता है, जो भक्तों को भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।


5. समाज और राजनीति पर दृष्टिकोण: तुलसीदास जी ने समाज की विभिन्न समस्याओं और राजनीतिक अस्थिरता का भी उल्लेख किया है, और धर्म तथा न्याय का पालन करने का संदेश दिया है।



प्रसिद्ध दोहे:

"तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
वशीकरण यह मंत्र है, परिहरु वचन कठोर॥"

इस दोहे में तुलसीदास जी ने मधुर वचन बोलने की महत्ता बताई है। कठोर वचनों को त्याग कर मधुरता से बात करना सभी को आकर्षित और प्रसन्न करता है।

"सियाराम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी॥"

इसमें तुलसीदास जी ने जगत को सियाराममय मानकर प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर के रूप में देखने की बात कही है।

दोहावली को पढ़ने और मनन करने से मनुष्य के जीवन में नैतिकता, भक्ति, प्रेम और सहिष्णुता का विकास होता है। यह रचना संपूर्ण जीवन दर्शन को सरल दोहों में प्रस्तुत करती है, जो आज भी समाज में अत्यंत प्रासंगिक हैं।
गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पुस्तक आप खरीद सकते हैं।


रविवार, नवंबर 10, 2024

रामचरित मानस तुलसीदास ramcharitmanas tulsidas ji


 दोस्तों, रामचरितमानस तुलसीदास जी द्वारा रचित एक महाकाव्य है, जो भगवान श्रीराम के जीवन और उनके आदर्शों का संपूर्ण वर्णन करता है। इसे रामायण का एक अद्भुत रूपांतरण कहा जा सकता है। तुलसीदास जी ने इसे अवधी भाषा में लिखा, जिससे यह आम जनता के लिए सरल और सुलभ हो गया। इसका रचना काल संवत 1631 (सन् 1574) माना जाता है।

रामचरितमानस सात कांडों में विभाजित है:

1. बाल कांड – श्रीराम के जन्म, बाल्यकाल और उनके विद्या अध्ययन का वर्णन है।


2. अयोध्या कांड – राजा दशरथ का वचन पालन और श्रीराम का वनवास, अयोध्या का शोक चित्रित है।


3. अरण्य कांड – वनवास काल में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के वन जीवन, ऋषि-मुनियों से मिलन, और सीता हरण का वर्णन है।


4. किष्किंधा कांड – श्रीराम का हनुमान और सुग्रीव से मिलन, बाली वध और लंका पर चढ़ाई की तैयारी है।


5. सुंदर कांड – हनुमान जी की लंका यात्रा, सीता से मिलना, लंका दहन और रामभक्ति का संदेश है।


6. लंकाकांड – श्रीराम और रावण के बीच युद्ध का वर्णन है, जिसमें रावण का वध और सीता की मुक्ति होती है।


7. उत्तर कांड – श्रीराम के अयोध्या लौटने, राज्याभिषेक और बाद के घटनाक्रम का उल्लेख है।



रामचरितमानस न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहरा संदेश देने वाला साहित्यिक रत्न भी है। इसमें भक्ति, मर्यादा, सत्य और न्याय के आदर्शों को प्रस्तुत किया गया है, जो समाज को एक अनुकरणीय जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
दोस्तों गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित रामचरित मानस ग्रंथ अपने घर पर लाकर जरूर पढ़ें और पुजा कक्ष में अवश्य रखें।

तुलसीदास जी की विनयपत्रिका



दोस्तों, विनयपत्रिका संत तुलसीदास जी की एक महान काव्य रचना है, जिसमें उन्होंने भगवान श्रीराम के प्रति अपनी गहरी भक्ति, विनम्रता और आत्मसमर्पण को व्यक्त किया है। इस ग्रंथ में तुलसीदास जी ने अपनी भावनाओं को बहुत ही सरल, हृदयस्पर्शी और सजीव भाषा में प्रस्तुत किया है। इसे हिंदी साहित्य में भक्ति काव्य का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।

विनयपत्रिका में कुल 279 पद हैं, जिनमें तुलसीदास जी ने भगवान श्रीराम के चरणों में अपनी विनम्रता और प्रेम भरे निवेदन किए हैं। इस रचना में भक्त भगवान से विभिन्न रूपों में विनय करते हैं, अपने पापों के लिए क्षमा माँगते हैं, जीवन की कठिनाइयों में प्रभु का सहारा चाहते हैं और उनके कृपा-कटाक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं।

इस ग्रंथ के कुछ विशेष पहलू:

1. विनय और आत्मसमर्पण: तुलसीदास जी अपने अहंकार को त्यागकर भगवान के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए हैं और उनके चरणों में विनय करते हैं।


2. प्रार्थना और कष्टों का वर्णन: जीवन के कष्टों, दुखों और मोह-माया की कठिनाइयों को ईश्वर की कृपा से दूर करने की प्रार्थना करते हैं।


3. भक्ति की गहराई: इसमें राम भक्ति की गहनता और ईश्वर से अनुराग का अत्यधिक मार्मिक वर्णन है।


4. मानवता और दीनता का बोध: विनयपत्रिका में तुलसीदास ने इस संसार के मोह, माया और क्षणभंगुरता का बोध करवाया है और बताया है कि सच्चा सुख प्रभु की भक्ति में ही है।



प्रसिद्ध पंक्तियाँ:

"मति भेद देखि ब्याकुल चित, प्रभु! मैं बाँह पकड़ि लेहु।
बिनु स्नेह के करि करुणा मय, मोहि अपनाय लेहु॥"

विनयपत्रिका भक्ति की उस पराकाष्ठा को दिखाती है, जहाँ भक्त अपने आराध्य के सामने पूर्ण रूप से विनम्र, समर्पित और अहंकारविहीन होकर खड़ा रहता है। इसे पढ़ने और मनन करने से व्यक्ति के भीतर भक्ति का संचार होता है और हृदय में भगवान श्रीराम के प्रति गहरी श्रद्धा उत्पन्न होती है।
यह पुस्तक गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित हुई, मिल जाएगी।

शनिवार, नवंबर 09, 2024

सम्पूर्ण हनुमान चालीसा


दोस्तों, हनुमान चालीसा तुलसीदास जी द्वारा रचित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जिसमें भगवान हनुमान की स्तुति की गई है। यहाँ इसका सम्पूर्ण पाठ प्रस्तुत है:

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥

शंकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥

लाय सजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तें काँपै॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

अष्टसिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

दोहा
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

चौपाई
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

हनुमान चालीसा के नियमित पाठ से भक्तों को बल, बुद्धि, और साहस प्राप्त होता है। इसे पाठ करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और भगवान हनुमान की कृपा सदैव बनी रहती है।
आपको हनुमानजी के प्रति अपनी भक्ति का प्रमाण देते हुए, कमेंट बॉक्स में " जय श्री राम" लिख दीजिए।

हनुमान चालीसा की रचना


 दोस्तों, हनुमान चालीसा तुलसीदास जी द्वारा रचित एक अत्यंत प्रसिद्ध भक्ति स्तोत्र है, जो भगवान हनुमान की स्तुति में लिखा गया है। यह अवधी भाषा में 40 चौपाइयों में है, इसीलिए इसे "चालीसा" कहा जाता है। इसमें हनुमान जी के चरित्र, गुणों, वीरता, शक्ति और उनकी भक्ति का वर्णन किया गया है। भक्तों के बीच यह अत्यंत लोकप्रिय है और इसे नियमित रूप से पाठ करने से भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त होती है।

हनुमान चालीसा की मुख्य विशेषताएँ:

शक्ति और साहस: हनुमान जी को "अंजनी पुत्र" और "पवनसुत" कहा गया है, और उनकी वीरता तथा बल का महिमामंडन किया गया है।

ज्ञान और बुद्धि: उन्हें ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना गया है, जो भक्तों को धैर्य और विवेक के साथ कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा देते हैं।

भक्ति और सेवा: हनुमान जी को श्रीराम के परम भक्त के रूप में दर्शाया गया है, जिन्होंने समर्पण और सेवा का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत किया।

संकट मोचक: यह भी माना जाता है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से भक्त के सारे संकट दूर होते हैं और उसे मानसिक और शारीरिक बल प्राप्त होता है।


हनुमान चालीसा का आरंभ इस दोहे से होता है:

"श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।"

हनुमान चालीसा के पाठ से व्यक्ति को साहस, बल, और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से मन में आत्मविश्वास और शांति का विकास होता है, और भगवान हनुमान की कृपा से जीवन में आने वाली बाधाओं का नाश होता है।
पूरा हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए अगली पोस्ट में पढ़ें।

विशिष्ट पोस्ट

संत रामानंद जी महाराज के शिष्य

लोकप्रिय लेख