गुरु लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गुरु लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, जनवरी 07, 2025

मंगल ग्रह और दोष



दोस्तों,
मंगल देव हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवता, जिन्हें भौम भी कहा जाता हैं और नवग्रहों में से एक हैं। उन्हें शक्ति, ऊर्जा, साहस, पराक्रम और भूमि का देवता माना जाता है। मंगल देव को ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, और वे जीवन में साहस, आत्मविश्वास और संघर्ष की क्षमता प्रदान करते हैं।
मंगल देव की उत्पत्ति का वर्णन विभिन्न पुराणों में मिलता है।

प्रमुख कथा के अनुसार, मंगल देव का जन्म भगवान शिव के पसीने से हुआ। जब शिव जी तपस्या कर रहे थे, तो उनकी कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिरीं, और उनसे मंगल देव का जन्म हुआ। इसलिए उन्हें "भूमिपुत्र" कहा जाता है।

मंगल देव को शिव और पार्वती का पुत्र भी माना जाता है।


मंगल देव का वर्ण (रंग) लाल है।

वे लाल वस्त्र पहनते हैं और उनके वाहन भेड़िया या भेड़ है।

उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें त्रिशूल, गदा, कमल और वर मुद्रा होती है।


मंगल ग्रह साहस, ऊर्जा, भूमि, संपत्ति, और भाइयों का कारक है।

मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है तथा मकर राशि में उच्च और कर्क राशि में नीच होता है।

शुभ मंगल व्यक्ति को साहसी, परिश्रमी और संपन्न बनाता है। अशुभ मंगल के कारण व्यक्ति को गुस्सा, विवाद, और भूमि संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।


मंगल देव की पूजा मंगलवार के दिन की जाती है।

मंगल दोष (मांगलिक दोष) से बचने के लिए लोग हनुमान जी की पूजा करते हैं।

मंगल ग्रह की शांति के लिए लाल वस्त्र पहनना, मसूर की दाल, गुड़, और तांबे का दान करना शुभ माना जाता है।

मंगल मंत्र:

ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः


यदि कुंडली में मंगल ग्रह अशुभ स्थान पर हो, तो इसे "मंगल दोष" या "मांगलिक दोष" कहते हैं।

यह वैवाहिक जीवन में बाधा उत्पन्न कर सकता है। इसके समाधान के लिए विशेष पूजा और मंगल ग्रह की शांति के उपाय किए जाते हैं।

मंगल देव को वीरता और युद्ध के देवता माना जाता है।

वे धर्म और न्याय के रक्षक हैं और बुराई के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक हैं।

उनके प्रभाव से व्यक्ति में ऊर्जा, साहस, और नेतृत्व क्षमता बढ़ती है।


मंगल देव की पूजा से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक शक्ति प्राप्त होती है, भूमि और संपत्ति संबंधी समस्याओं का समाधान होता है और वैवाहिक जीवन में शांति आती है।
मंगल वार को भूमि पर कोई गढ्ढा खोदना अशुभ माना जाता हैं।
हिंदू धर्म की अन्य जानकारी पढ़िए हमारी अगली पोस्ट पर क्लिक करें 

बुध ग्रह और फल



दोस्तों,
बुध देव हिंदू धर्म में प्रमुख नवग्रहों में से एक माना गया हैं। बुध को बुद्धिमत्ता, वाणी, तर्कशक्ति, व्यापार, गणित और ज्योतिष का देवता माना जाता है। वे भगवान श्री विष्णु जी के भक्त और चंद्रमा (चंद्र देव) और तारा ( देव गुरु बृहस्पति की पत्नी) के पुत्र हैं। बुध ग्रह का ज्योतिषीय महत्व भी अत्यधिक है और इसे विद्या, संवाद, और सौम्यता का कारक माना जाता है।
बुध का जन्म चंद्र देव और बृहस्पति की पत्नी तारा के संयोग से हुआ। इसके कारण उन्हें चंद्रमा का पुत्र कहा जाता है।
उनकी उत्पत्ति को लेकर पुराणों में कई कथाएं मिलती हैं।

बुध देव का वर्ण (रंग) हरा बताया गया है।

वे हरे रंग के वस्त्र धारण करते हैं और उनके वाहन सिंह या रथ है, जिसे आठ घोड़े खींचते हैं।

उनके हाथों में तलवार, गदा, और ढाल होती है और वे वर मुद्रा में होते हैं।

बुध कुंडली में बुद्धिमत्ता, संवाद, तर्कशक्ति, और व्यापार का प्रतीक है।

बुध मीन राशि में नीच और कन्या राशि में उच्च होता है।

बुध की स्थिति यदि शुभ हो तो व्यक्ति बुद्धिमान, वाक्पटु और व्यापार में कुशल होता है। अगर यह अशुभ हो तो वाणी में दोष, शिक्षा में बाधा, और आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

बुध देव की कृपा पाने के लिए बुधवार के दिन उनकी पूजा की जाती है।

हरे रंग के वस्त्र पहनना, हरे मूंग का दान करना, और बुध मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।

बुध मंत्र:

ॐ बुधाय नमः


बुध देव को वाणी का स्वामी कहा जाता है, इसलिए संवाद और लेखन कार्य में उनकी पूजा की जाती है।

बुध का संबंध भगवान विष्णु से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि वे भी बुध ग्रह के अधिपति हैं।


बुध देव की पूजा जीवन में ज्ञान, तर्क, और सफलता लाने के लिए की जाती है। उनकी कृपा से व्यक्ति जीवन के कई कठिनाईयों से उबर सकता है।
अन्य ग्रह और हिंदू धर्म की अधिक जानकारी के लिए हमारी अगली पोस्ट पढ़ते हुए आगे बढ़ सकते हैं।

सोमवार, जनवरी 06, 2025

भद्रा काल क्या होता हैं।


दोस्तों,
भद्रा हिंदू ज्योतिष और पंचांग में एक विशेष अवधारणा है, जिसे शुभ और अशुभ मुहूर्त में महत्वपूर्ण माना जाता है। भद्रा को काल का एक विशेष अंग माना जाता है, जो अशुभ और बाधक मानी जाती है। इसलिए, जब भद्रा काल होती है, तब कई धार्मिक और मांगलिक कार्यों को करने से बचा जाता है। विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य शुभ कार्यों को भद्रा के समय में करने की मनाही है।

भद्रा का संबंध काल और ज्योतिष से: भद्रा का उल्लेख पंचांग में किया जाता है। भद्रा काल को शुभ समय नहीं माना जाता, और ज्योतिष के अनुसार, इस समय पर किए गए कार्यों में विघ्न, बाधा, और अशांति की संभावनाएँ होती हैं। भद्रा काल हर दिन अलग-अलग समय पर आता है, और यह चंद्रमा की स्थिति और नक्षत्रों पर निर्भर करता है।

भद्रा के प्रकार: भद्रा के दो प्रकार माने जाते हैं:

1. पाताल भद्रा: यह पृथ्वी के नीचे मानी जाती है और इसका प्रभाव मुख्यतः नकारात्मक होता है। इसे अधिक अशुभ माना गया है।


2. स्वर्गीय भद्रा: यह पृथ्वी के ऊपर मानी जाती है और इसे तुलनात्मक रूप से कम अशुभ माना जाता है।



भद्रा का प्रतीक और उसका स्वरूप: पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन मानी जाती हैं।
 उन्हें अशुभ कार्यों की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि उनकी दृष्टि जहां पड़ती है, वहां कुछ न कुछ बाधाएं उत्पन्न होती हैं। भद्रा को एक दिव्य शक्ति के रूप में भी देखा जाता है जो अशुभ और बाधक ऊर्जा का प्रतीक है।

भद्रा काल का प्रयोग और महत्व: पंचांग के अनुसार, भद्रा के समय पर मांगलिक कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है। विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य शुभ कार्य भद्रा काल में वर्जित होते हैं। हालांकि, कुछ कार्य, जैसे तंत्र साधना, दान, और शुभ संकल्प, इस समय में किए जा सकते हैं। भद्रा काल को समाप्त होने के बाद ही शुभ कार्य करना उचित माना जाता है।
भद्रा का समय पंचांग में प्रतिदिन देखा जा सकता है, और यह समय हर दिन अलग-अलग होता है। इसलिए लोग इसे ध्यान में रखते हुए अपने कार्यों की योजना बनाते हैं, ताकि शुभ कार्यों में बाधा न आए।
आशा है कि आप भद्रा काल के बारे में अच्छे से जान गए होंगे, हमें कमेंट बॉक्स मे जय श्रीराम लिख कर भेजें।

विशिष्ट पोस्ट

संत रामानंद जी महाराज के शिष्य

लोकप्रिय लेख