दोस्तों, नानी बाई राजस्थान के भक्ति साहित्य और लोक कथाओं में एक विशेष स्थान रखती हैं, विशेषकर "नानी बाई का मायरा" के संदर्भ में।
"नानी बाई का मायरा" एक प्रसिद्ध कथा है जो मीरा बाई के समय की मानी जाती है, और इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति के चमत्कार और उनके द्वारा निभाई गई लाज का मार्मिक चित्रण किया गया है।
नानी बाई का मायरा की कथा
"नानी बाई का मायरा" कथा का आधार यह है कि नानी बाई नामक एक भक्त लड़की का विवाह तय होता है, और परंपरा के अनुसार, लड़की के पिता को मायरा (शादी में देने के लिए विशेष दान और उपहार) भरना होता है। इस कथा के अनुसार, नानी बाई के पिता गरीब और भक्त व्यक्ति होते हैं और उनके पास मायरे के लिए धन नहीं होता है। समाज में अपमान से बचने के लिए और अपनी बेटी का सम्मान बनाए रखने के लिए वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में जाते हैं और प्रार्थना करते हैं।
नानी बाई के पिता जी श्रीकृष्ण के सच्चे भक्त थे, और उन्होंने उनसे मदद की आशा में प्रार्थना की। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं मायरा भरने का निर्णय लिया। श्रीकृष्ण ने सजी-धजी बारात के साथ अद्भुत भव्यता से मायरे के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँ दीं। वे सोने, चाँदी, हीरे, और रत्नों से भरी गठरी लेकर आए और धूमधाम से नानी बाई का मायरा भरा।
नानी बाई का मायरा का महत्व
"नानी बाई का मायरा" कथा भक्ति, समर्पण और भगवान पर अटूट विश्वास का प्रतीक है। यह कथा बताती है कि सच्चे भक्तों की लाज भगवान स्वयं रखते हैं। राजस्थान , गुजरात और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में इस कथा का मंचन किया जाता है और इसे गीतों के माध्यम से भी प्रस्तुत किया जाता है। विशेष अवसरों पर इस कथा का गायन भक्ति के रूप में होता है और इसे गाने वाले भक्त भगवान की महिमा और उनकी कृपा का वर्णन करते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों पर विशेष प्रेम और उनकी भक्ति के प्रति उनकी जिम्मेदारी का प्रतीक है। यह कथा आज भी भक्तों को भगवान में विश्वास रखने और उनकी भक्ति में अडिग रहने की प्रेरणा देती है।
नानी बाई गुजरात के प्रसिद्ध संत और कृष्ण भक्त नरसी मेहता की बेटी थीं। नरसी मेहता (जिन्हें नरसी भगत भी कहा जाता है) का जीवन भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और उनके प्रति अनन्य प्रेम का उदाहरण है।
नरसी मेहता एक निर्धन और भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी, लेकिन वे कृष्ण में असीम श्रद्धा रखते थे। जब उनकी बेटी नानी बाई का विवाह तय हुआ, तो उन्हें विवाह के रीति-रिवाजों के अनुसार "मायरा" भरना था। मायरा में उपहार, गहने, कपड़े आदि शामिल होते हैं, जिन्हें बेटी के विवाह में देने की परंपरा होती है। लेकिन नरसी मेहता इतने गरीब थे कि उनके पास इस मायरे को भरने के लिए साधन नहीं थे। इस परिस्थिति में, उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की और उन पर अपना भरोसा बनाए रखा।
नरसी मेहता की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी लाज रखी और स्वयं गोकुल से द्वारिका तक मायरा भरने के लिए आए। कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने अद्भुत वैभव के साथ मायरे की सभी आवश्यकताओं को पूरा किया। सोने-चाँदी के आभूषण, रत्न, वस्त्र और सभी प्रकार के उपहार भगवान स्वयं अपने दिव्य रूप में लाकर मायरा भरे और इस प्रकार नरसी मेहता की पुत्री नानी बाई का विवाह संपन्न हुआ।
"नानी बाई का मायरा" कथा भक्तों के बीच यह संदेश देती है कि सच्चे भक्त की सहायता भगवान स्वयं करते हैं और उसकी लाज कभी नहीं जाने देते।
यह कथा आज भी भक्ति और समर्पण का प्रतीक मानी जाती है और गुजरात, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में बड़े प्रेम और श्रद्धा के साथ गाई जाती है।
तो कमेंट बॉक्स मे जय श्री कृष्ण लिखिए और अगली पोस्ट पर जाकर अन्य जानकारी पढ़िए।