रविवार, जनवरी 12, 2025

महाकुम्भ मेला हेल्प लाइन और शाही स्नान , mahakumbh mela helpline number prayagraj


दोस्तों,
प्रयागराज में महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 से शुरू हो गया है और यह 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। 

महाकुंभ के दौरान प्रमुख स्नान पर्व निम्नलिखित हैं:

 पौष पूर्णिमा: 13 जनवरी 2025 (सोमवार)


 मकर संक्रांति: 14 जनवरी 2025 (मंगलवार)


 मौनी अमावस्या (सोमवती): 29 जनवरी 2025 (बुधवार)


 बसंत पंचमी: 3 फरवरी 2025 (सोमवार)


माघी पूर्णिमा: 12 फरवरी 2025 (बुधवार)


 महाशिवरात्रि: 26 फरवरी 2025 (बुधवार)



महाकुंभ के पहले दिन, 13 जनवरी 2025 को, पौष पूर्णिमा के अवसर पर पहला शाही स्नान आयोजित हुआ। 

महाकुंभ के दौरान, संगम में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों से मुक्ति की मान्यता है।

इस आयोजन में करोड़ों श्रद्धालुओं के भाग लेने की उम्मीद है, और प्रशासन ने उनकी सुविधा और सुरक्षा के लिए व्यापक तैयारियां की हैं।
प्रयागराज में महाकुंभ 2025 के दौरान प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के लिए व्यापक व्यवस्थाएँ की हैं। प्रमुख व्यवस्थाओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

सुरक्षा व्यवस्था

लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए पुलिस, रैपिड एक्शन फोर्स (RAF), एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें तैनात हैं।

संगम क्षेत्र और अन्य प्रमुख स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।

ड्रोन के माध्यम से निगरानी की जा रही है।


यातायात व्यवस्था

महाकुंभ के लिए विशेष ट्रैफिक प्लान तैयार किया गया है।

विभिन्न स्थानों से कुंभ मेला क्षेत्र तक पहुँचने के लिए पार्किंग और शटल सेवाओं की व्यवस्था है।

भीड़ प्रबंधन के लिए वन-वे यातायात सिस्टम लागू किया गया है।

आवास और शिविर

लाखों श्रद्धालुओं के लिए अस्थायी शिविर लगाए गए हैं।

धर्मशालाएँ, होटल और आश्रमों में भी ठहरने की विशेष व्यवस्था की गई है।

VIP और आम श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग व्यवस्था है।

 स्वास्थ्य सेवाएँ

संगम क्षेत्र में कई अस्थायी अस्पताल और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र बनाए गए हैं।

एम्बुलेंस सेवाएँ 24/7 उपलब्ध हैं।

डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती की गई है।


साफ-सफाई और स्वच्छता

कुंभ क्षेत्र में स्वच्छता के विशेष इंतजाम किए गए हैं।

शौचालयों और स्नानघरों की बड़ी संख्या में स्थापना की गई है।

कूड़ा प्रबंधन और पुनर्नवीनीकरण की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।


पेयजल और भोजन

कई स्थानों पर शुद्ध पेयजल के लिए टैंकर और वॉटर फिल्टर लगाए गए हैं।

लंगरों और भोजन वितरण केंद्रों की व्यवस्था है, जहाँ मुफ्त में भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।

 विशेष स्नान व्यवस्था

संगम में स्नान के लिए अलग-अलग घाटों का निर्माण किया गया है।

VIP, संत-महात्मा और आम श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग स्नान घाट बनाए गए हैं।

घाटों पर लाइफ गार्ड और नाव सेवाएँ उपलब्ध हैं।

 सूचना और गाइडेंस

श्रद्धालुओं को मार्गदर्शन देने के लिए सूचना केंद्र स्थापित किए गए हैं।

जगह-जगह डिजिटल बोर्ड और दिशासूचक संकेत लगाए गए हैं।

कई भाषाओं में अनाउंसमेंट की व्यवस्था है।


पंजीकरण और हेल्पलाइन

श्रद्धालुओं के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन पंजीकरण की सुविधा है।

कुंभ मेला हेल्पलाइन नंबर और ऐप के जरिए हर जानकारी उपलब्ध है।

कुंभ के दौरान विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

प्रमुख संतों और अखाड़ों के प्रवचन और शाही स्नान का आयोजन किया गया है।


यदि आपको किसी विशेष जानकारी की आवश्यकता हो, तो कुंभ मेला प्रशासन द्वारा जारी हेल्पलाइन नंबर और वेबसाइट पर संपर्क कर सकते हैं।
रेल मंडल के पीआरओ ने बताया कि महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं को ट्रेन प्रस्थान समय, परिचालन स्टेशन, टिकट घर, आश्रय स्थल समेत अन्य जानकारी पाने के लिए प्रयागराज रेल मंडल ने टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर 18004199139 जारी की है।
अन्य जानकारी के लिए कुम्भ मेला पुलिस के टॉल फ्री 1920 , 1944 डायल करें,
सावधान रहें, सतर्क रहें और पवित्र स्नान करें।

मंगलवार, जनवरी 07, 2025

मंगल ग्रह और दोष



दोस्तों,
मंगल देव हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवता, जिन्हें भौम भी कहा जाता हैं और नवग्रहों में से एक हैं। उन्हें शक्ति, ऊर्जा, साहस, पराक्रम और भूमि का देवता माना जाता है। मंगल देव को ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, और वे जीवन में साहस, आत्मविश्वास और संघर्ष की क्षमता प्रदान करते हैं।
मंगल देव की उत्पत्ति का वर्णन विभिन्न पुराणों में मिलता है।

प्रमुख कथा के अनुसार, मंगल देव का जन्म भगवान शिव के पसीने से हुआ। जब शिव जी तपस्या कर रहे थे, तो उनकी कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिरीं, और उनसे मंगल देव का जन्म हुआ। इसलिए उन्हें "भूमिपुत्र" कहा जाता है।

मंगल देव को शिव और पार्वती का पुत्र भी माना जाता है।


मंगल देव का वर्ण (रंग) लाल है।

वे लाल वस्त्र पहनते हैं और उनके वाहन भेड़िया या भेड़ है।

उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें त्रिशूल, गदा, कमल और वर मुद्रा होती है।


मंगल ग्रह साहस, ऊर्जा, भूमि, संपत्ति, और भाइयों का कारक है।

मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है तथा मकर राशि में उच्च और कर्क राशि में नीच होता है।

शुभ मंगल व्यक्ति को साहसी, परिश्रमी और संपन्न बनाता है। अशुभ मंगल के कारण व्यक्ति को गुस्सा, विवाद, और भूमि संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।


मंगल देव की पूजा मंगलवार के दिन की जाती है।

मंगल दोष (मांगलिक दोष) से बचने के लिए लोग हनुमान जी की पूजा करते हैं।

मंगल ग्रह की शांति के लिए लाल वस्त्र पहनना, मसूर की दाल, गुड़, और तांबे का दान करना शुभ माना जाता है।

मंगल मंत्र:

ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः


यदि कुंडली में मंगल ग्रह अशुभ स्थान पर हो, तो इसे "मंगल दोष" या "मांगलिक दोष" कहते हैं।

यह वैवाहिक जीवन में बाधा उत्पन्न कर सकता है। इसके समाधान के लिए विशेष पूजा और मंगल ग्रह की शांति के उपाय किए जाते हैं।

मंगल देव को वीरता और युद्ध के देवता माना जाता है।

वे धर्म और न्याय के रक्षक हैं और बुराई के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक हैं।

उनके प्रभाव से व्यक्ति में ऊर्जा, साहस, और नेतृत्व क्षमता बढ़ती है।


मंगल देव की पूजा से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक शक्ति प्राप्त होती है, भूमि और संपत्ति संबंधी समस्याओं का समाधान होता है और वैवाहिक जीवन में शांति आती है।
मंगल वार को भूमि पर कोई गढ्ढा खोदना अशुभ माना जाता हैं।
हिंदू धर्म की अन्य जानकारी पढ़िए हमारी अगली पोस्ट पर क्लिक करें 

बुध ग्रह और फल



दोस्तों,
बुध देव हिंदू धर्म में प्रमुख नवग्रहों में से एक माना गया हैं। बुध को बुद्धिमत्ता, वाणी, तर्कशक्ति, व्यापार, गणित और ज्योतिष का देवता माना जाता है। वे भगवान श्री विष्णु जी के भक्त और चंद्रमा (चंद्र देव) और तारा ( देव गुरु बृहस्पति की पत्नी) के पुत्र हैं। बुध ग्रह का ज्योतिषीय महत्व भी अत्यधिक है और इसे विद्या, संवाद, और सौम्यता का कारक माना जाता है।
बुध का जन्म चंद्र देव और बृहस्पति की पत्नी तारा के संयोग से हुआ। इसके कारण उन्हें चंद्रमा का पुत्र कहा जाता है।
उनकी उत्पत्ति को लेकर पुराणों में कई कथाएं मिलती हैं।

बुध देव का वर्ण (रंग) हरा बताया गया है।

वे हरे रंग के वस्त्र धारण करते हैं और उनके वाहन सिंह या रथ है, जिसे आठ घोड़े खींचते हैं।

उनके हाथों में तलवार, गदा, और ढाल होती है और वे वर मुद्रा में होते हैं।

बुध कुंडली में बुद्धिमत्ता, संवाद, तर्कशक्ति, और व्यापार का प्रतीक है।

बुध मीन राशि में नीच और कन्या राशि में उच्च होता है।

बुध की स्थिति यदि शुभ हो तो व्यक्ति बुद्धिमान, वाक्पटु और व्यापार में कुशल होता है। अगर यह अशुभ हो तो वाणी में दोष, शिक्षा में बाधा, और आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

बुध देव की कृपा पाने के लिए बुधवार के दिन उनकी पूजा की जाती है।

हरे रंग के वस्त्र पहनना, हरे मूंग का दान करना, और बुध मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।

बुध मंत्र:

ॐ बुधाय नमः


बुध देव को वाणी का स्वामी कहा जाता है, इसलिए संवाद और लेखन कार्य में उनकी पूजा की जाती है।

बुध का संबंध भगवान विष्णु से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि वे भी बुध ग्रह के अधिपति हैं।


बुध देव की पूजा जीवन में ज्ञान, तर्क, और सफलता लाने के लिए की जाती है। उनकी कृपा से व्यक्ति जीवन के कई कठिनाईयों से उबर सकता है।
अन्य ग्रह और हिंदू धर्म की अधिक जानकारी के लिए हमारी अगली पोस्ट पढ़ते हुए आगे बढ़ सकते हैं।

सोमवार, जनवरी 06, 2025

राहु काल और दोष क्या होता हैं।


दोस्तों,
राहु हिंदू ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण ग्रह और देवता माने जाते हैं, जिन्हें छाया ग्रह के रूप में जाना जाता है। राहु का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है; यह एक छाया ग्रह है जो सूर्य और चंद्रमा के साथ संपर्क में आने पर ग्रहण जैसी घटनाओं का कारण बनता है। राहु का प्रभाव रहस्यमय, अप्रत्याशित, और कभी-कभी अशुभ भी माना जाता है। इसलिए, इसे आमतौर पर ज्योतिष में सावधानी के साथ देखा जाता है।
राहु की उत्पत्ति की कथा: राहु का वर्णन समुद्र मंथन की कथा में मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तो भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं को अमृत देना शुरू किया। एक दानव, जिसे स्वरभानु कहा जाता था, ने देवताओं का वेश धारण करके अमृत पी लिया। लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और इस बात का संकेत दिया। विष्णु जी ने तुरंत अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर और धड़ अलग कर दिया। अमृत पीने के कारण वह मर नहीं सका और उसका सिर "राहु" के रूप में जाना गया, जबकि धड़ "केतु" के रूप में।
राहु का स्वरूप: राहु का स्वरूप मुख्य रूप से धड़-विहीन सिर के रूप में होता है, जो एक काले रंग का ग्रह माना जाता है। वह सांप की तरह दिखने वाला है और उसका असर अक्सर अप्रत्याशित और रहस्यमयी होता है। राहु को छाया ग्रह के रूप में देखा जाता है और यह ग्रहण जैसी घटनाओं का कारण बनता है।

ज्योतिष में राहु का महत्व: ज्योतिष के अनुसार, राहु का प्रभाव मानव जीवन में रहस्यमय, भ्रामक, और अचानक परिवर्तनों का संकेतक होता है। इसे ग्रहण, भ्रम, और नकारात्मकता का प्रतिनिधि माना जाता है। कुंडली में राहु की स्थिति व्यक्ति के जीवन में बड़े उतार-चढ़ाव ला सकती है, जैसे कि अचानक लाभ या हानि, विदेश यात्रा, अप्रत्याशित घटनाएं आदि। राहु का प्रभाव जहां व्यक्ति को भ्रमित और भटकाने वाला होता है, वहीं कभी-कभी यह व्यक्ति को अप्रत्याशित रूप से सफलता और प्रसिद्धि भी दिला सकता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो रहस्यमय या अप्रचलित होते हैं।
राहु का उपाय और पूजन: राहु के प्रभाव को संतुलित करने के लिए लोग विभिन्न उपाय करते हैं, जैसे राहु ग्रह के लिए विशेष मंत्रों का जाप करना, राहु की पूजा करना, और शनिवार या राहु काल में काले तिल, काले वस्त्र, और सरसों के तेल का दान करना। राहु का उपाय करने से उसके नकारात्मक प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है। साथ ही राहु के सकारात्मक गुणों, जैसे साहस, दृढ़ता, और नेतृत्व क्षमता को उभारने के प्रयास किए जाते हैं।
और सभी नौ ग्रहों के बारे जानने के हमारी पुरानी पोस्ट जरुर पढ़ें।

भद्रा काल क्या होता हैं।


दोस्तों,
भद्रा हिंदू ज्योतिष और पंचांग में एक विशेष अवधारणा है, जिसे शुभ और अशुभ मुहूर्त में महत्वपूर्ण माना जाता है। भद्रा को काल का एक विशेष अंग माना जाता है, जो अशुभ और बाधक मानी जाती है। इसलिए, जब भद्रा काल होती है, तब कई धार्मिक और मांगलिक कार्यों को करने से बचा जाता है। विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य शुभ कार्यों को भद्रा के समय में करने की मनाही है।

भद्रा का संबंध काल और ज्योतिष से: भद्रा का उल्लेख पंचांग में किया जाता है। भद्रा काल को शुभ समय नहीं माना जाता, और ज्योतिष के अनुसार, इस समय पर किए गए कार्यों में विघ्न, बाधा, और अशांति की संभावनाएँ होती हैं। भद्रा काल हर दिन अलग-अलग समय पर आता है, और यह चंद्रमा की स्थिति और नक्षत्रों पर निर्भर करता है।

भद्रा के प्रकार: भद्रा के दो प्रकार माने जाते हैं:

1. पाताल भद्रा: यह पृथ्वी के नीचे मानी जाती है और इसका प्रभाव मुख्यतः नकारात्मक होता है। इसे अधिक अशुभ माना गया है।


2. स्वर्गीय भद्रा: यह पृथ्वी के ऊपर मानी जाती है और इसे तुलनात्मक रूप से कम अशुभ माना जाता है।



भद्रा का प्रतीक और उसका स्वरूप: पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन मानी जाती हैं।
 उन्हें अशुभ कार्यों की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि उनकी दृष्टि जहां पड़ती है, वहां कुछ न कुछ बाधाएं उत्पन्न होती हैं। भद्रा को एक दिव्य शक्ति के रूप में भी देखा जाता है जो अशुभ और बाधक ऊर्जा का प्रतीक है।

भद्रा काल का प्रयोग और महत्व: पंचांग के अनुसार, भद्रा के समय पर मांगलिक कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है। विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य शुभ कार्य भद्रा काल में वर्जित होते हैं। हालांकि, कुछ कार्य, जैसे तंत्र साधना, दान, और शुभ संकल्प, इस समय में किए जा सकते हैं। भद्रा काल को समाप्त होने के बाद ही शुभ कार्य करना उचित माना जाता है।
भद्रा का समय पंचांग में प्रतिदिन देखा जा सकता है, और यह समय हर दिन अलग-अलग होता है। इसलिए लोग इसे ध्यान में रखते हुए अपने कार्यों की योजना बनाते हैं, ताकि शुभ कार्यों में बाधा न आए।
आशा है कि आप भद्रा काल के बारे में अच्छे से जान गए होंगे, हमें कमेंट बॉक्स मे जय श्रीराम लिख कर भेजें।

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संत रामानंद जी महाराज के शिष्य

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