बुधवार, मार्च 12, 2025

भविष्य मलिका में भविष्य वाणी जो भारत को लेकर की गई हैं


"भविष्य मलिका"  आज से 600 साल प्राचीन भविष्यवाणी ग्रंथ है, जिसे एक उड़िया संत अच्युतानंद दास द्वारा लिखा गया है। यह ग्रंथ ओडिशा की पंचसखा परंपरा के अनुसार पांच संतों ने लिखा है और इसमें आने वाले समय के बारे में कई भविष्यवाणियाँ दर्ज हैं।

ग्रंथ की मुख्य बातें

 अच्युतानंद दास, जो 16वीं शताब्दी के ओडिशा के संत थे।
भविष्य की घटनाएँ, समाज में होने वाले बदलाव, प्राकृतिक आपदाएँ, और कलियुग के अंत का वर्णन भी किया गया हैं।
यह ग्रंथ गूढ़ भाषा में इस लिखा गया है कि,
 आम लोगों के लिए समझना कठिन होता है।

कलियुग में धर्म का पतन होगा।
प्राकृतिक आपदाएँ, युद्ध, और महामारियाँ आएंगी।
एक बड़े परिवर्तन के बाद सत्ययुग की वापसी होगी।
"भविष्य मलिका" में कई भविष्यवाणियाँ दर्ज हैं, जिनमें से कुछ को लोग वर्तमान समय से जोड़ते हैं। जैसे 

 कलियुग का अंत

इसमें लिखा गया हैं कि,
जब गाय दूध देना बंद कर देगी, बेटा पिता का सम्मान नहीं करेगा, और लोग पाप को धर्म मान लेंगे, तब कलियुग का अंत पास ही होगा।

आधुनिक समय में नैतिक पतन, पारिवारिक कलह, और पर्यावरण असंतुलन को इससे जोड़ कर भी देखा जा रहा हैं।

 प्राकृतिक आपदाएँ और महामारियाँ जो घटित हुई हैं या आने वाली हैं,

"धरा काँपे, जल उठे, मेघ गर्जे बिन बरसे" – यानी धरती भूकंप से कंपेगी, पानी बढ़ जाएगा, और बिना बरसात के ही बादल गरजेंगे।

इसे ग्लोबल वार्मिंग, सुनामी, और जलवायु परिवर्तन से जोड़ कर बताया जा रहा हैं।

कोरोना वायरस के बारे में भी भविष्यवाणी भी की गई थी, कहा गया कि "एक अदृश्य शक्ति लोगों को ग्रसित करेगी और सभी लोग अपने घरों में बंद हो जाएंगे।"

एक महायुद्ध की भविष्यवाणी

ग्रंथ में कहा गया कि पूरी दुनिया में एक विश्व युद्ध होगा जिसमें कई देश शामिल होंगे , जिनके नाम भी बताए गए हैं और बहुत विध्वंस होगा।

इसे कई जानकार भविष्य के तृतीय विश्व युद्ध या परमाणु युद्ध से जोड़ते हैं।

भारत में एक महान नेता या संत का अवतार 

मलिका में यह भी उल्लेख मिलता है कि भारत में एक ऐसा महान व्यक्ति सता में आएगा जो देश को पुनः शक्तिशाली बनाएगा और धर्म की स्थापना करेगा।

इसे लोग कई ऐतिहासिक और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जोड़ते हैं।

सत्ययुग की वापसी

कलियुग के अंत में एक बड़ा परिवर्तन होगा, जिसके बाद से सत्ययुग का आरंभ हो जाएगा।

इस दौरान सच्चाई और धार्मिकता का पुनः उत्थान होगा।

भविष्य मलिका में विश्व युद्ध की भविष्यवाणी

अच्युतानंद दास द्वारा लिखित "भविष्य मलिका" में कई जगहों पर एक महायुद्ध (विश्व युद्ध) का उल्लेख मिलता है, जो अत्यधिक विनाशकारी होगा। इसे आज के समय में तीसरे विश्व युद्ध की भविष्यवाणी से जोड़ा जाता है।

महायुद्ध से जुड़ी प्रमुख भविष्यवाणियाँ

पहली भविष्यवाणी
 तीन ओर से युद्ध होगा

"तीन डांगा एक होई मारिबे महा गड़बड़ी होई"

(तीन शक्तियाँ मिलकर एक बड़ी तबाही मचाएंगी)

यह भविष्यवाणी कई लोग अमेरिका, रूस और चीन के संभावित युद्ध से जोड़ते हैं।


दूसरी भविष्य वाणी 
परमाणु युद्ध और भारी विनाश

"अग्नि बृष्टि होई, धरा जलिबो, मानुष माटि समान होईबो।"

(आग की बारिश होगी, धरती जल उठेगी, और मनुष्य मिट्टी के समान नष्ट हो जाएगा।)

इसे लोग परमाणु युद्ध के खतरों से जोड़ते हैं, जिससे पूरी दुनिया पर असर पड़ सकता है।



तिसरी भविष्य वाणी 
भारत का विशेष महत्व

"भारत भूमि बांचे, धर्म रक्षा होई"

(भारत बचा रहेगा और धर्म की रक्षा होगी)

यह संकेत करता है कि भारत किसी बड़े विनाश से बच सकता है और अंततः धर्म की पुनर्स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।



चौथी भविष्य वाणी 
युद्ध के बाद नया युग आएगा

"सत्ययुग पुनः आसीबो, कलि समाप्त होइबो।"

(एक नए युग की शुरुआत होगी और कलियुग का अंत होगा।)

इसका मतलब है कि यह विनाश एक नए अध्याय की शुरुआत करेगा, जहाँ सच्चाई और धार्मिकता पुनः स्थापित होगी।



क्या यह भविष्यवाणी सच हो सकती है?

वर्तमान में रूस-यूक्रेन युद्ध, इजरायल-हमास संघर्ष, चीन-ताइवान तनाव जैसी घटनाएँ हो रही हैं।

परमाणु हथियारों का खतरा बढ़ रहा है।

कई लोग मानते हैं कि तीसरा विश्व युद्ध किसी भी समय भड़क सकता है, और यह भविष्यवाणी इससे जुड़ी हो सकती है।

आप क्या सोचते हैं? क्या यह भविष्यवाणी हमारे समय के लिए प्रासंगिक लगती है?
हमें कमेंट बॉक्स में लिख कर भेजें।

बुधवार, मार्च 05, 2025

होलिका दहन शुभ मुहूर्त


होली को फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है. देश भर मे फाल्गुन मास में मनाए जाने की वजह से इस पर्व को "फाल्गुनी " भी कहा जाता है. होली को पारंपरिक तरीके से दो दिन मनाते है. पहले दिन होलिका दहन होता है और अगले दिन रंग-गुलाल से होली खेली जाती है ।
 इस साल होली पर होलिका दहन 13 मार्च की शाम को किया जाएगा और 14 मार्च को रंग वाली होली मनाई जाएगी. कहा जाता है कि होली की पूजा जीवन में सुख समृद्धि लाती है. रोगों से भी मुक्ति दिलाती है. पौराणिक कथा अनुसार भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रहलाद को होलिका से बचाया था
होलिका दहन का मुहूर्त 

पंचांग के अनुसार, अबकी  बार १३ मार्च को सुबह 10 बजकर 35 मिनट पर फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि शुरू होगी. वहीं, समापन 14 मार्च को 12 बजकर 23 मिनट पर होगा. इस लिए होलिका दहन 13 मार्च 2025 को मनाई जाएगी. 
होली का पर्व  के अन्य दिनों में इस तिथियों पर मनाया जाएगा

 होलिका दहन
13 मार्च 2025 गुरुवार को होगा। शुभ मुहूर्त रात्रि 11:30 बजे से 12:25  बजे तक है।
भद्रा काल शाम 6:28 बजे तक रहेगा, इसलिए उसके बाद होलिका दहन करना उचित होगा। क्योंकि भद्रा काल में होलिका दहन करना वर्जित है।


 रंगों की होली
14 मार्च 2025 शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन लोग अबीर-गुलाल और रंगों से एक-दूसरे को रंगते हैं और आनंद मनाते हैं। 


रंग पंचमी
 19 मार्च 2025 बुधवार को मनाई जाएगी। पंचमी तिथि 18 मार्च 2025 को रात 10:10 बजे से शुरू होकर 20 मार्च 2025 को 12:35 बजे समाप्त होगी। 


तो दोस्तों,
आप इन तिथियों पर होली के विभिन्न पर्वों का आनंद लें।
आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ!

मंगलवार, मार्च 04, 2025

श्री हनुमान जी का जन्म, Shree Hanuman ji ka janm,


श्री हनुमान जी का अवतार त्रेतायुग में हुआ था, हनुमान जी को भगवान महादेव का अवतार माना जाता है। हनुमान जी की माता अंजना और पिता केसरी थे, इसलिए हनुमान जी को अंजनेय और केसरीनंदन भी कहा जाता है।

केसरी नंदन के जन्म की एक पौराणिक कथा के अनुसार, माता अंजना ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान भोलेनाथ की कठोर तपस्या की थी। माता अंजनी की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें वरदान दिया कि मैं खुद उनके पुत्र के रूप में जन्म लूंगा।
हनुमान जी का जन्म और महादेव के संबंध में एक और पौराणिक कथा हैं कि ,
जब लंका के राजा रावण ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की, तो महादेव ने प्रसन्न होकर उसे अनेक वरदान दिए। लेकिन जब लंकापति रावण ने कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया, तो महादेव ने अपने पैर के अंगूठे से उसे दबा दिया, जिससे लंकापति को अपनी शक्ति का अहंकार टूट गया। तब रावण ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए "शिव तांडव स्तोत्र" की रचना की।

इससे प्रसन्न होकर भोलेनाथ जी ने रावण को अमरत्व का वरदान तो नहीं दिया, लेकिन उसे आश्वासन दिया कि त्रेतायुग में वे स्वयं वानर रूप में जन्म लेंगे और रावण के अंत का कारण बनेंगे। यही कारण है कि भगवान शिव ने हनुमान जी के रूप में अवतार लिया।
हनुमान जी की माता अंजना एक अप्सरा थीं, जो गौतम जी की पुत्री थी, जिन्हें शापवश वानरी योनि में जन्म लेना पड़ा था।
जब अयोध्या में राजा दशरथ ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया। जब यज्ञ का प्रसाद तीनों रानियों को दिया गया, तब उसी समय भगवान शिव के निर्देश पर वायुदेव ने उस दिव्य प्रसाद का एक अंश उड़ाकर माता अंजना के पास पहुँचा दिया। उस प्रसाद को ग्रहण करने से माता अंजना गर्भवती हुईं और उन्होंने भगवान शिव के रुद्रांश रूप में हनुमान जी को जन्म दिया।

इस वजह से हनुमान जी को "शंकर सुवन", "पवनपुत्र", "अंजनेय", और "केसरीनंदन" के नाम से भी जाना जाता है। वे भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार माने जाते हैं।

हनुमान जी के जन्म का उद्देश्य भगवान राम की सेवा करना और धर्म की रक्षा करना था। वे अजर-अमर हैं और भक्तों की हर विपत्ति को दूर करने वाले माने जाते हैं।
हमने जितनी जानकारी प्राप्त की है उसे आप तक पहुंचा रहे हैं, हनुमान जी के जन्म से संबंधित कोई और जानकारी आप भी रखते हैं तो कमेंट बॉक्स मे लिख कर हमें भेजें।

शुक्रवार, फ़रवरी 28, 2025

Holi colours Festival होली का त्यौहार

होली हिन्दू धर्म में रंगों का एक शानदार त्योहार है, जो हर साल फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और इसे पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
भक्त प्रहलाद और होलिका की होली के त्योहार से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देती है।
प्राचीन समय में हिरण्यकशिपु नाम का एक बड़ा अहंकारी दानव राजा था। उसने भगवान श्री विष्णु से अपना बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी का कठोर तप किया और ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे न कोई मनुष्य मार सकता है, न कोई देवता, न दिन में, न रात में, न अंदर, न बाहर, न किसी अस्त्र से, न शस्त्र से, और न ही आकाश में और न ही पृथ्वी पर। इस वरदान के कारण वह अजेय हो गया और बाद में खुद को भगवान मानने लगा।

प्रहलाद की भक्ति
हिरण्यकशिपु का अपना पुत्र प्रहलाद बचपन से ही प्रभु श्री विष्णु का परम भक्त था। उसने अपने पिता की आज्ञा के विरुद्ध जाकर श्री विष्णु जी की भक्ति की ,
और यह बात हिरण्यकशिपु को बिलकुल सहन नहीं हुई। उसने भक्त प्रहलाद को अनेकों बार मारने की निष्फल कोशिश की, लेकिन हर बार भगवान श्री विष्णु जी ने उसे बचा लिया।

होलिका दहन
अंत में थक हार कर, हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को मारने का आदेश दिया। होलिका को भी यह वरदान था कि वह अग्नि में जल नहीं सकती, जब तक कोई पुरुष का स्पर्श नहीं होता हैं। वह  भक्त प्रहलाद को लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान श्री विष्णु की कृपा से होलिका जलकर राख हो गई और  भक्त प्रहलाद सुरक्षित बच गए।

होली का महत्व

यह घटना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, और इसीलिए हर साल होली से पहले होलिका दहन किया जाता है। इस दिन लोग लकड़ियों और उपलों से होलिका जलाकर अपनी बुरी आदतों और नकारात्मकता को खत्म करने का संकल्प लेते हैं।
होली के अगले दिन लोग रंग, गुलाल और पानी से एक-दूसरे को रंगते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं और त्योहार का खूब आनंद लेते हैं।
ढोल, गानों और डांस के साथ होली का जश्न और भी मज़ेदार बन जाता है ।
राजस्थान में संग बजाकर फाल्गुन के गीत गाया जाता हैं।
गैर नृत्य किया जाता हैं।
 इस दिन विशेष रूप से भांग से बने पेय और गुझिया जैसी मिठाइयाँ बहुत लोकप्रिय होती हैं।
हमारी अगली पोस्ट पढ़ते हुए आगे बढ़ सकते हैं।

रविवार, फ़रवरी 09, 2025

मृत्यु के देवता धर्मराज यम yamraj



दोस्तों ,
यमराज हिंदू धर्म में मृत्यु के देवता और न्यायाधीश माने जाते हैं। उन्हें धर्मराज के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि वे धर्म के आधार पर लोगों को उनके कर्मों का न्यायोचित फल देते हैं। यमराज का वर्णन कई प्राचीन ग्रंथों, पुराणों, और वेदों में मिलता है। उन्हें मृत्युलोक (पृथ्वी) और यमलोक के स्वामी के रूप में जाना जाता है, जहां वे मृत्यु के बाद जीवात्माओं का न्याय करते हैं।

यमराज की उत्पत्ति और परिवार: यमराज को सूर्य देव और संज्ञा (या संध्या) के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। उनकी बहन यमुनाजी हैं, जिनका नदी के रूप में अत्यधिक धार्मिक महत्व है। यमराज और यमुना का रिश्ता विशेष रूप से भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है, और उनकी इस कथा से यम द्वितीया (भाई दूज) पर्व मनाया जाता है।

यमराज का कार्य और न्याय का सिद्धांत: यमराज का मुख्य कार्य प्राणियों की मृत्यु के बाद उनके कर्मों का हिसाब-किताब करना है। वह यमलोक में अपनी सभा लगाते हैं, जहाँ उनके सहायक चित्रगुप्त प्रत्येक जीव के कर्मों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं। यमराज धर्म और कर्म के आधार पर आत्माओं का न्याय करते हैं और उन्हें स्वर्ग, नरक, या पुनर्जन्म में भेजते हैं। उनके निर्णय कर्मों पर आधारित होते हैं, और इसलिए वे एक निष्पक्ष और न्यायप्रिय देवता माने जाते हैं।

यमराज का स्वरूप: यमराज का स्वरूप गम्भीर और शक्तिशाली होता है। उन्हें सामान्यतः हरे या काले रंग के परिधान में दिखाया जाता है, और उनके सिर पर मुकुट होता है। वे मूसल (गदा) और पाश (रस्सी) लेकर चलते हैं, जो आत्माओं को पकड़ने और न्याय का प्रतीक हैं। उनका वाहन भैंसा (महिष) है, जो स्थिरता और गंभीरता का प्रतीक है।

यमराज का पौराणिक महत्व: यमराज का उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों में है। महाभारत, पुराणों, और अन्य शास्त्रों में उनकी कथाएँ और उनका धर्म का पालन करने का संदेश मिलता है। उनके नियम और धर्म पालन के सिद्धांत हमें सिखाते हैं कि जीवन में धर्म और कर्म का विशेष महत्व है, और मृत्यु के बाद हम अपने कर्मों का फल अवश्य पाते हैं।

यमराज की पूजा और मान्यता: हालाँकि यमराज की पूजा आमतौर पर नहीं की जाती, लेकिन लोग उन्हें मृत्यु के बाद अपने कर्मों के फल के प्रति सचेत करते हैं। भाई दूज के दिन उनकी बहन यमुनाजी की पूजा के माध्यम से यमराज को भी सम्मानित किया जाता है, और इस दिन भाई-बहन के रिश्ते का पवित्र पर्व मनाया जाता है।
अन्य जानकारी पढ़िए हमारी अगली पोस्ट में।


शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2025

सनातन धर्म क्या हैं? Religion Sanatan Dharma


विश्व में सनातन धर्म एक प्राचीन और शाश्वत धर्म है, जिसे आमतौर पर हिंदू धर्म के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन सनातन धर्म में अन्य कई धर्म, समाज और समुदाय भी आते हैं।
 "सनातन" का अर्थ है "शाश्वत" या "अनादि," और "धर्म" का अर्थ है "कर्तव्य," "न्याय," या "आचार-विचार।" इसका मूल वेदों, उपनिषदों, पुराणों और अन्य शास्त्रों में निहित है। सनातन धर्म अति विशाल और गहन विचारों की खान है।
पुराने समय का विज्ञान या इस समय के विज्ञान से कई गुना अधिक जानकारी संयोजित किए हुए हैं।

सनातन धर्म की मुख्य विशेषताएँ हम बता रहे हैं लेकिन, सारी विशेषताएं आज तक कोई समझ नही पाया है।

 वेद और शास्त्रों का आधार – वेद, उपनिषद, भगवद गीता, महाभारत, रामायण और पुराण इसकी धार्मिक और दार्शनिक आधारशिला हैं। इनमें गूढ़ विषयों पर जो लिखा गया हैं उसके लिए कई साधु संतों ने अनुवाद करने की कोशिश भी की हैं।


ईश्वर की व्यापकता – इसमें अद्वैत (एकेश्वरवाद) और द्वैत (अनेक देवी-देवताओं की उपासना) दोनों का समावेश है।
हर एक धर्म समाज और समुदाय ने अपने इष्ट को अपनी कल्पना से पूजित किया है।


 कर्म और पुनर्जन्म – यह सिद्धांत सिखाता है कि व्यक्ति के कर्मों का प्रभाव उसके भविष्य और पुनर्जन्म पर पड़ता है।
सनातन धर्म में एक जीव को चौरासी लाख बार जन्म लेने की बात कही गई हैं, कर्म को महत्वपूर्ण भूमिका में रखा गया हैं।


 मुक्ति (मोक्ष) – जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने को मोक्ष कहा जाता है, जो योग, भक्ति, ज्ञान और कर्म के मार्ग से प्राप्त किया जा सकता है। मोक्ष को सनातन धर्म का मुख्य उद्देश्य बताया गया हैं, जीव को जन्मों के चक्कर से निकलकर अपने इष्ट से मिल जाने को मोक्ष कहा गया हैं।


 समावेशी दृष्टिकोण – इसमें सभी मतों और विचारधाराओं के लिए स्थान है, जिससे यह विविधता और सहिष्णुता को प्रोत्साहित करता है। विश्व और सारे ब्रह्माण्ड को एक ही पिता की संतान माना जाता हैं, सनातन धर्म में कोई पराया नहीं होता हैं।



सनातन धर्म केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है, जो व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार और आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है। सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखे गए श्लोकों में से किसी एक श्लोक से भी पूरे जीवन सार समझा जा सकता हैं।
 क्या आप इस विषय पर विस्तार से जानना चाहते हैं तो हमारे ब्लॉग की अन्य पोस्ट जरूर देखें, 

सोमवार, फ़रवरी 03, 2025

श्री विश्वकर्मा जी जयंती निमंत्रण 2025


आदि शिल्पाचार्य श्री विश्वकर्मा भगवान मन्दिर का
नवम् वार्षिकोत्सव एवं
श्री विश्वकर्मा जयंती महोत्सव

हर्षोल्लास से
निमंत्रण देते हैं
भाव से पधारिये
कार्यक्रम का आयोजन बड़े धूमधाम से...........

विश्वकर्मा प्रभु वन्देऊ, चरण कमल धरि ध्यान।
 श्री प्रभु, बल अरू शिल्प गुण दिजे दयानिधान।

 करूह कृपा शंकर सरिस, विश्वकर्मा शिव रूप।
श्री सुभदा रचना सहित, हृदय बसहु सुर भूप।

परमस्नेही बंधुवर, जय श्री विश्वकर्मा जी री।

आपको आमन्त्रित करते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि समस्त सुथार (जांगिड़) समाज के परमआराध्य देव आदि शिल्पाचार्य, विज्ञान सम्राट, सृष्टी रचयिता भगवान श्री विश्वकर्मा जी की असीम अनुकम्पा एवं आप सभी समाज के अथक, परिश्रम, प्रयास, समर्पण एवं आर्थिक सहयोग से गुड़ामालाणी जिला-बाड़मेर की पावन धरा पर प्रतिष्ठित श्री विश्वकर्मा भगवान मन्दिर के नवम् वार्षिकोत्सव एवं श्री विश्वकर्मा जी जयंती महोत्सव का भव्य आयोजन वि. स. 2081 मिति माघ शुक्ल पक्ष 13 (त्रयोदशी) सोमवार दिनांक 10.02.2025 को किया जा रहा हैं

अतः आप सभी आत्मियजनों से प्रार्थना हैं कि इस पावन अवसर पर सपरिवार, माताओं, बहनों, ईष्टमित्रों सहित पधारकर देवदर्शन भजन कीर्तन, सत्संग, हवन एवं भगवान के चढ़ावे की बोलियों को अक्षय पुण्य लाभ अर्जित कर समारोह को सफल बनाने की अहम भूमिका निभाएं।

मांगलिक कार्यक्रम

माघ शुक्ल पक्ष 12 रविवार दि.09.02.2025 को जाने माने कलाकारों द्वारा भजन संध्या

माघ शुक्ल पक्ष 13 सोमवार दि. 10.02.2025 प्रात: हवन एवं आरती

माघ शुक्ल पक्ष 13 मवार दि. 10.02.2025 अभिजीत मुहुर्त दोपहर सामाजिक कार्यक्रम

माघ शुक्ल पक्ष 13 सोमवार दि. 10.02.2025 प्रतिभा व भामाशाह सम्मान समारोह

09 फरवरी 2025 रविवार कार्यक्रम (समय प्रातः 09 बजे से)

1. सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता 
2. मेहन्दी प्रतियोगिता 
3. म्यूजिकल चेयर 
4. खेलकूद प्रतियोगिता (निंबू चम्मच दौड़ आदि)

नोट:- 10 वी (80% से अधिक 12 वी (80% अधिक) 

नव चयनित एवम् विशेष प्रतिभाएं अपनी सूचना निम्न पर भेजें मो.
9571689272,
9828847036,
9928016299,
963640221, 
8107887472

निवेदकः - समस्त सुधार (जांगिड़) समाज गुड़ामालानी, जिला-बाड़मेर (राज.)

रविवार, जनवरी 12, 2025

महाकुम्भ मेला हेल्प लाइन और शाही स्नान , mahakumbh mela helpline number prayagraj


दोस्तों,
प्रयागराज में महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 से शुरू हो गया है और यह 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। 

महाकुंभ के दौरान प्रमुख स्नान पर्व निम्नलिखित हैं:

 पौष पूर्णिमा: 13 जनवरी 2025 (सोमवार)


 मकर संक्रांति: 14 जनवरी 2025 (मंगलवार)


 मौनी अमावस्या (सोमवती): 29 जनवरी 2025 (बुधवार)


 बसंत पंचमी: 3 फरवरी 2025 (सोमवार)


माघी पूर्णिमा: 12 फरवरी 2025 (बुधवार)


 महाशिवरात्रि: 26 फरवरी 2025 (बुधवार)



महाकुंभ के पहले दिन, 13 जनवरी 2025 को, पौष पूर्णिमा के अवसर पर पहला शाही स्नान आयोजित हुआ। 

महाकुंभ के दौरान, संगम में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति और पापों से मुक्ति की मान्यता है।

इस आयोजन में करोड़ों श्रद्धालुओं के भाग लेने की उम्मीद है, और प्रशासन ने उनकी सुविधा और सुरक्षा के लिए व्यापक तैयारियां की हैं।
प्रयागराज में महाकुंभ 2025 के दौरान प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के लिए व्यापक व्यवस्थाएँ की हैं। प्रमुख व्यवस्थाओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

सुरक्षा व्यवस्था

लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए पुलिस, रैपिड एक्शन फोर्स (RAF), एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें तैनात हैं।

संगम क्षेत्र और अन्य प्रमुख स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।

ड्रोन के माध्यम से निगरानी की जा रही है।


यातायात व्यवस्था

महाकुंभ के लिए विशेष ट्रैफिक प्लान तैयार किया गया है।

विभिन्न स्थानों से कुंभ मेला क्षेत्र तक पहुँचने के लिए पार्किंग और शटल सेवाओं की व्यवस्था है।

भीड़ प्रबंधन के लिए वन-वे यातायात सिस्टम लागू किया गया है।

आवास और शिविर

लाखों श्रद्धालुओं के लिए अस्थायी शिविर लगाए गए हैं।

धर्मशालाएँ, होटल और आश्रमों में भी ठहरने की विशेष व्यवस्था की गई है।

VIP और आम श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग व्यवस्था है।

 स्वास्थ्य सेवाएँ

संगम क्षेत्र में कई अस्थायी अस्पताल और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र बनाए गए हैं।

एम्बुलेंस सेवाएँ 24/7 उपलब्ध हैं।

डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती की गई है।


साफ-सफाई और स्वच्छता

कुंभ क्षेत्र में स्वच्छता के विशेष इंतजाम किए गए हैं।

शौचालयों और स्नानघरों की बड़ी संख्या में स्थापना की गई है।

कूड़ा प्रबंधन और पुनर्नवीनीकरण की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।


पेयजल और भोजन

कई स्थानों पर शुद्ध पेयजल के लिए टैंकर और वॉटर फिल्टर लगाए गए हैं।

लंगरों और भोजन वितरण केंद्रों की व्यवस्था है, जहाँ मुफ्त में भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।

 विशेष स्नान व्यवस्था

संगम में स्नान के लिए अलग-अलग घाटों का निर्माण किया गया है।

VIP, संत-महात्मा और आम श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग स्नान घाट बनाए गए हैं।

घाटों पर लाइफ गार्ड और नाव सेवाएँ उपलब्ध हैं।

 सूचना और गाइडेंस

श्रद्धालुओं को मार्गदर्शन देने के लिए सूचना केंद्र स्थापित किए गए हैं।

जगह-जगह डिजिटल बोर्ड और दिशासूचक संकेत लगाए गए हैं।

कई भाषाओं में अनाउंसमेंट की व्यवस्था है।


पंजीकरण और हेल्पलाइन

श्रद्धालुओं के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन पंजीकरण की सुविधा है।

कुंभ मेला हेल्पलाइन नंबर और ऐप के जरिए हर जानकारी उपलब्ध है।

कुंभ के दौरान विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

प्रमुख संतों और अखाड़ों के प्रवचन और शाही स्नान का आयोजन किया गया है।


यदि आपको किसी विशेष जानकारी की आवश्यकता हो, तो कुंभ मेला प्रशासन द्वारा जारी हेल्पलाइन नंबर और वेबसाइट पर संपर्क कर सकते हैं।
रेल मंडल के पीआरओ ने बताया कि महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं को ट्रेन प्रस्थान समय, परिचालन स्टेशन, टिकट घर, आश्रय स्थल समेत अन्य जानकारी पाने के लिए प्रयागराज रेल मंडल ने टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर 18004199139 जारी की है।
अन्य जानकारी के लिए कुम्भ मेला पुलिस के टॉल फ्री 1920 , 1944 डायल करें,
सावधान रहें, सतर्क रहें और पवित्र स्नान करें।

मंगलवार, जनवरी 07, 2025

मंगल ग्रह और दोष



दोस्तों,
मंगल देव हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवता, जिन्हें भौम भी कहा जाता हैं और नवग्रहों में से एक हैं। उन्हें शक्ति, ऊर्जा, साहस, पराक्रम और भूमि का देवता माना जाता है। मंगल देव को ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, और वे जीवन में साहस, आत्मविश्वास और संघर्ष की क्षमता प्रदान करते हैं।
मंगल देव की उत्पत्ति का वर्णन विभिन्न पुराणों में मिलता है।

प्रमुख कथा के अनुसार, मंगल देव का जन्म भगवान शिव के पसीने से हुआ। जब शिव जी तपस्या कर रहे थे, तो उनकी कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिरीं, और उनसे मंगल देव का जन्म हुआ। इसलिए उन्हें "भूमिपुत्र" कहा जाता है।

मंगल देव को शिव और पार्वती का पुत्र भी माना जाता है।


मंगल देव का वर्ण (रंग) लाल है।

वे लाल वस्त्र पहनते हैं और उनके वाहन भेड़िया या भेड़ है।

उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें त्रिशूल, गदा, कमल और वर मुद्रा होती है।


मंगल ग्रह साहस, ऊर्जा, भूमि, संपत्ति, और भाइयों का कारक है।

मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है तथा मकर राशि में उच्च और कर्क राशि में नीच होता है।

शुभ मंगल व्यक्ति को साहसी, परिश्रमी और संपन्न बनाता है। अशुभ मंगल के कारण व्यक्ति को गुस्सा, विवाद, और भूमि संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।


मंगल देव की पूजा मंगलवार के दिन की जाती है।

मंगल दोष (मांगलिक दोष) से बचने के लिए लोग हनुमान जी की पूजा करते हैं।

मंगल ग्रह की शांति के लिए लाल वस्त्र पहनना, मसूर की दाल, गुड़, और तांबे का दान करना शुभ माना जाता है।

मंगल मंत्र:

ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः


यदि कुंडली में मंगल ग्रह अशुभ स्थान पर हो, तो इसे "मंगल दोष" या "मांगलिक दोष" कहते हैं।

यह वैवाहिक जीवन में बाधा उत्पन्न कर सकता है। इसके समाधान के लिए विशेष पूजा और मंगल ग्रह की शांति के उपाय किए जाते हैं।

मंगल देव को वीरता और युद्ध के देवता माना जाता है।

वे धर्म और न्याय के रक्षक हैं और बुराई के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक हैं।

उनके प्रभाव से व्यक्ति में ऊर्जा, साहस, और नेतृत्व क्षमता बढ़ती है।


मंगल देव की पूजा से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक शक्ति प्राप्त होती है, भूमि और संपत्ति संबंधी समस्याओं का समाधान होता है और वैवाहिक जीवन में शांति आती है।
मंगल वार को भूमि पर कोई गढ्ढा खोदना अशुभ माना जाता हैं।
हिंदू धर्म की अन्य जानकारी पढ़िए हमारी अगली पोस्ट पर क्लिक करें 

बुध ग्रह और फल



दोस्तों,
बुध देव हिंदू धर्म में प्रमुख नवग्रहों में से एक माना गया हैं। बुध को बुद्धिमत्ता, वाणी, तर्कशक्ति, व्यापार, गणित और ज्योतिष का देवता माना जाता है। वे भगवान श्री विष्णु जी के भक्त और चंद्रमा (चंद्र देव) और तारा ( देव गुरु बृहस्पति की पत्नी) के पुत्र हैं। बुध ग्रह का ज्योतिषीय महत्व भी अत्यधिक है और इसे विद्या, संवाद, और सौम्यता का कारक माना जाता है।
बुध का जन्म चंद्र देव और बृहस्पति की पत्नी तारा के संयोग से हुआ। इसके कारण उन्हें चंद्रमा का पुत्र कहा जाता है।
उनकी उत्पत्ति को लेकर पुराणों में कई कथाएं मिलती हैं।

बुध देव का वर्ण (रंग) हरा बताया गया है।

वे हरे रंग के वस्त्र धारण करते हैं और उनके वाहन सिंह या रथ है, जिसे आठ घोड़े खींचते हैं।

उनके हाथों में तलवार, गदा, और ढाल होती है और वे वर मुद्रा में होते हैं।

बुध कुंडली में बुद्धिमत्ता, संवाद, तर्कशक्ति, और व्यापार का प्रतीक है।

बुध मीन राशि में नीच और कन्या राशि में उच्च होता है।

बुध की स्थिति यदि शुभ हो तो व्यक्ति बुद्धिमान, वाक्पटु और व्यापार में कुशल होता है। अगर यह अशुभ हो तो वाणी में दोष, शिक्षा में बाधा, और आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

बुध देव की कृपा पाने के लिए बुधवार के दिन उनकी पूजा की जाती है।

हरे रंग के वस्त्र पहनना, हरे मूंग का दान करना, और बुध मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।

बुध मंत्र:

ॐ बुधाय नमः


बुध देव को वाणी का स्वामी कहा जाता है, इसलिए संवाद और लेखन कार्य में उनकी पूजा की जाती है।

बुध का संबंध भगवान विष्णु से भी जोड़ा जाता है, क्योंकि वे भी बुध ग्रह के अधिपति हैं।


बुध देव की पूजा जीवन में ज्ञान, तर्क, और सफलता लाने के लिए की जाती है। उनकी कृपा से व्यक्ति जीवन के कई कठिनाईयों से उबर सकता है।
अन्य ग्रह और हिंदू धर्म की अधिक जानकारी के लिए हमारी अगली पोस्ट पढ़ते हुए आगे बढ़ सकते हैं।

सोमवार, जनवरी 06, 2025

राहु काल और दोष क्या होता हैं।


दोस्तों,
राहु हिंदू ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण ग्रह और देवता माने जाते हैं, जिन्हें छाया ग्रह के रूप में जाना जाता है। राहु का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है; यह एक छाया ग्रह है जो सूर्य और चंद्रमा के साथ संपर्क में आने पर ग्रहण जैसी घटनाओं का कारण बनता है। राहु का प्रभाव रहस्यमय, अप्रत्याशित, और कभी-कभी अशुभ भी माना जाता है। इसलिए, इसे आमतौर पर ज्योतिष में सावधानी के साथ देखा जाता है।
राहु की उत्पत्ति की कथा: राहु का वर्णन समुद्र मंथन की कथा में मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तो भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं को अमृत देना शुरू किया। एक दानव, जिसे स्वरभानु कहा जाता था, ने देवताओं का वेश धारण करके अमृत पी लिया। लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उसे पहचान लिया और इस बात का संकेत दिया। विष्णु जी ने तुरंत अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का सिर और धड़ अलग कर दिया। अमृत पीने के कारण वह मर नहीं सका और उसका सिर "राहु" के रूप में जाना गया, जबकि धड़ "केतु" के रूप में।
राहु का स्वरूप: राहु का स्वरूप मुख्य रूप से धड़-विहीन सिर के रूप में होता है, जो एक काले रंग का ग्रह माना जाता है। वह सांप की तरह दिखने वाला है और उसका असर अक्सर अप्रत्याशित और रहस्यमयी होता है। राहु को छाया ग्रह के रूप में देखा जाता है और यह ग्रहण जैसी घटनाओं का कारण बनता है।

ज्योतिष में राहु का महत्व: ज्योतिष के अनुसार, राहु का प्रभाव मानव जीवन में रहस्यमय, भ्रामक, और अचानक परिवर्तनों का संकेतक होता है। इसे ग्रहण, भ्रम, और नकारात्मकता का प्रतिनिधि माना जाता है। कुंडली में राहु की स्थिति व्यक्ति के जीवन में बड़े उतार-चढ़ाव ला सकती है, जैसे कि अचानक लाभ या हानि, विदेश यात्रा, अप्रत्याशित घटनाएं आदि। राहु का प्रभाव जहां व्यक्ति को भ्रमित और भटकाने वाला होता है, वहीं कभी-कभी यह व्यक्ति को अप्रत्याशित रूप से सफलता और प्रसिद्धि भी दिला सकता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो रहस्यमय या अप्रचलित होते हैं।
राहु का उपाय और पूजन: राहु के प्रभाव को संतुलित करने के लिए लोग विभिन्न उपाय करते हैं, जैसे राहु ग्रह के लिए विशेष मंत्रों का जाप करना, राहु की पूजा करना, और शनिवार या राहु काल में काले तिल, काले वस्त्र, और सरसों के तेल का दान करना। राहु का उपाय करने से उसके नकारात्मक प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है। साथ ही राहु के सकारात्मक गुणों, जैसे साहस, दृढ़ता, और नेतृत्व क्षमता को उभारने के प्रयास किए जाते हैं।
और सभी नौ ग्रहों के बारे जानने के हमारी पुरानी पोस्ट जरुर पढ़ें।

भद्रा काल क्या होता हैं।


दोस्तों,
भद्रा हिंदू ज्योतिष और पंचांग में एक विशेष अवधारणा है, जिसे शुभ और अशुभ मुहूर्त में महत्वपूर्ण माना जाता है। भद्रा को काल का एक विशेष अंग माना जाता है, जो अशुभ और बाधक मानी जाती है। इसलिए, जब भद्रा काल होती है, तब कई धार्मिक और मांगलिक कार्यों को करने से बचा जाता है। विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य शुभ कार्यों को भद्रा के समय में करने की मनाही है।

भद्रा का संबंध काल और ज्योतिष से: भद्रा का उल्लेख पंचांग में किया जाता है। भद्रा काल को शुभ समय नहीं माना जाता, और ज्योतिष के अनुसार, इस समय पर किए गए कार्यों में विघ्न, बाधा, और अशांति की संभावनाएँ होती हैं। भद्रा काल हर दिन अलग-अलग समय पर आता है, और यह चंद्रमा की स्थिति और नक्षत्रों पर निर्भर करता है।

भद्रा के प्रकार: भद्रा के दो प्रकार माने जाते हैं:

1. पाताल भद्रा: यह पृथ्वी के नीचे मानी जाती है और इसका प्रभाव मुख्यतः नकारात्मक होता है। इसे अधिक अशुभ माना गया है।


2. स्वर्गीय भद्रा: यह पृथ्वी के ऊपर मानी जाती है और इसे तुलनात्मक रूप से कम अशुभ माना जाता है।



भद्रा का प्रतीक और उसका स्वरूप: पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन मानी जाती हैं।
 उन्हें अशुभ कार्यों की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि उनकी दृष्टि जहां पड़ती है, वहां कुछ न कुछ बाधाएं उत्पन्न होती हैं। भद्रा को एक दिव्य शक्ति के रूप में भी देखा जाता है जो अशुभ और बाधक ऊर्जा का प्रतीक है।

भद्रा काल का प्रयोग और महत्व: पंचांग के अनुसार, भद्रा के समय पर मांगलिक कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है। विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य शुभ कार्य भद्रा काल में वर्जित होते हैं। हालांकि, कुछ कार्य, जैसे तंत्र साधना, दान, और शुभ संकल्प, इस समय में किए जा सकते हैं। भद्रा काल को समाप्त होने के बाद ही शुभ कार्य करना उचित माना जाता है।
भद्रा का समय पंचांग में प्रतिदिन देखा जा सकता है, और यह समय हर दिन अलग-अलग होता है। इसलिए लोग इसे ध्यान में रखते हुए अपने कार्यों की योजना बनाते हैं, ताकि शुभ कार्यों में बाधा न आए।
आशा है कि आप भद्रा काल के बारे में अच्छे से जान गए होंगे, हमें कमेंट बॉक्स मे जय श्रीराम लिख कर भेजें।

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