जी हां सही पढ़ा आपने, आज हम बात करेंगे भागने वाले विषय पर, जो आजकल हर गांव, देहात और समाज में व्याप्त हैं।
कहां तक इसे सही ठहरा सकते हैं, और कितना गलत साबित होता हैं।
क्या कानून में बदलाव की आवश्यकता है या समाज का रवैया अपनाया जा सकता है।
विषय लंबा जरुर है लेकिन यह एक भाई बहन, पति पत्नि, मां बाप, देवर जेठ, सास ससुर, नाना नानी, बुआ फूंफा, और जाति समुदाय सबके लिए चुल्लू भर पानी में डूबने के समान हो जाता हैं। चाहे लड़का या लड़की दोनों में से कोई गलती करें। आप कहोगे कि लड़के वाले समाज की तो इज्जत खराब नही होगी लेकिन ऐसा नहीं है ।
अंदर ही अंदर संदेह और भेदभाव की नजर से देखा जाता है। कुछ लोग तो उसके घर का पानी ही नही पीना चाहते है।
चलो आज हम बात करेंगे लड़की के परिवार की।
मां बाप अपनी परवरिश को दोष मान कर, भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु यह क्या कर दिया, जिसे एक श्रेष्ठ कुल की जननी, ससुराल की महारानी, परिवार और समाज की लाडली, गांव का नाम रौशन करने वाली , संसार में सबसे भोली भाली बच्ची समझ रहे थे वो तो, हमे मुर्दा , नासमझ, गंवार, अनाड़ी और अनुपयोगी वस्तु समझ रही थी। जब उसके लिए कुछ काम के नही रहे तो, कूड़ेदान में फेंक गई। हे प्रभु धन्य है तेरी जिंदगी, हम आ रहे हैं तेरे पास, नहीं जीना इस मतलबी संतान के सामने,
कहीं फिर से अपनापन ना आ जाए अलविदा।
जो भाई उसे बहना मान कर, उसके लिए हर खुशियां ढूंढ रहा था, अच्छा लड़का और शादी में होने वाली हर रीति रिवाज, धन दौलत, यहां तक की खुद कुर्बान हो सकता था, बहन के लिए, वो भी आज राखी का धागा तोड़ कर रो रहा था कोने में।
परिवार के अन्य लोग भी शर्मिंदा हो गए, समाज भी अपमानित महसूस कर रहा है।
फिर लापता होने, या अपहरण करने की पुलिस को सूचना दी जाती हैं तो पुलिस भी कहती हैं भाग गई होगी किसी लौंडे के साथ, भूल जाओ उसे।
सब उस परिवार को भला बुरा कह रहे हैं, बेटी कहां जा रही है, क्या कर रही है, तुम जिंदा थे या मर गए थे, बेटी की करतूतों पर ध्यान देना चाहिए था, हम सबकी नाक कटवा दी, अनेक बाते की जाती हैं जो, उस परिवार पर लाठियों के मारने से भी अधिक दर्द पहुंचता हैं।
जिनसे संबंधी बनने वाले थे वो भी मां बाप को दोषी ठहरा देते हैं।
गैर समाज के लोग, लड़की वाले समाज पर भी चुटकियां लेने से नही चूकते और तो और पड़ोस गांव वाले भी लड़की के गांव वालों से कहते हैं, आपके गांव की लड़की भाग गई, मर जाओ, गांव वालों।
जब कभी किसी परिवार, समाज या गांव में ऐसी स्थिति हो जाती हैं तो, हर बात काट कर, यही बात पहले की जाती हैं।
यहां तक कि हम और आप भी उत्सुक रहते हैं , आगे क्या हुआ ? सब जानना चाहते हैं।
ऐसा क्यों होता हैं इसका कारण, समाज या परिवार नहीं है।
कारण बहुत बारीक और सत्य है जो यह लेख पूरा पढ़ने के बाद समझ जाओगे।
अब बात करते हैं कानून और अधिकार की, जो भागने और भगाने में मदद करता हैं, जो परिवार, समाज और मां बाप को नही मानता है। कानून केवल दो आदमियों के वश में एक काले कोट वाले और दूसरा गांधी वाले फोटो का , उसके बाद में अंधा बन जाता हैं।
हमारे मन में यह बात भरी जाती हैं कि कानून और प्यार दोनों अंधे होते हैं लेकिन यह एक साफ सुथरा झूठ है।
प्रेम भी देख कर किया जाता हैं और कानून भी सबूत देख कर सजा देता है तो, अंधे कैसे हो गए।
पट्टी तो हमारी आंख पर बांधी जाती हैं, क्या कभी आंख बंद करने से अंधेरा हो सकता है।
दूसरी बात करेंगे कि कानून सबके लिए समान है, यह भी झूठ को छुपाने के लिए बोला जाने वाला झूठ है।
कभी कभी बड़े लोगों की लड़कियां भी भागने की कोशिश करती हैं या भाग जाति हैं लेकिन, यह बात गली मोहल्ले या मीडिया में आने से पहले ही सलटा दी जाती हैं।
कानून पढ़ाने वालों को भी इज्जत प्यारी होती हैं, या तो सहमति दे कर विवाह कर देते हैं या लड़के लड़की को उपर ही भेज देते हैं, बहाना बना देते हैं कि एक्सीडेंट हो गया, सुसाइड कर दिया , आदि।
जज, वकील , नेता पुलिस और सरकारी कर्मचारी सभी मिल जाते हैं एक दूसरे से लेकिन, आम आदमी का साथ देकर, उन्हें क्या मिलेगा।
कानून लोगों की सेवा सुरक्षा और अधिकार की रक्षा के लिए बना है न कि, शोषण, डर और दबाने के लिए बना था।
जिस दिन से कानून बना है तब से आज तक कई परिवर्तन भी हुए हैं, आगे भी होंगे, समय समय पर बदलाव जरूरी होता हैं क्योंकि, लोगों की जीवन शैली में भी बदलाव आया है।
कानून देश की व्यवस्था है देश का जनक तो नहीं है।
समाज, नागरिक और जनता का ही देश है, व्यवस्था में सुधार करना भी उनका अधिकार है।
कानून कहता है कि बालिग होने पर व्यक्ति अपना फैसला खुद कर सकता है क्योंकि, कानून निर्जीव हैं उसमें भावनाएं नही है, उसको दर्द नही होता हैं, इसलिए कठोर बन जाता हैं।
कानून में यदि जान होती या समझने की शक्ति होती तो कहता कि, बालिग होने पर व्यक्ति अपना फैसला खुद तब तक नहीं कर सकता है जब तक, उसने जन्म से बालिग बनाने वाले लोगों का एहसान ना चुका दिया हो।
मां बाप से बच्चों की शादी का हक नहीं छीनना चाहिए, क्योंकि उनका अनुभव कभी गलत नहीं होता हैं ।
कानून कोर्ट मैरिज करवा देता हैं जो, गरीब परिवार के लिए उपयोगी है लेकिन, भागने वाले फायदा ले लेते हैं, यह गलत बात है ।
शादी तो समाज में ही होनी चाहिए, खर्चा भले मत करो लेकिन साक्षी तो हजारों होंगे, सबका आशीर्वाद, अनुभव और सहमति तो प्रकट होगी।
प्रेम विवाह करने वाले लोगों में कुछ समय बाद तलाक की नौबत आ ही जाती हैं, फिर बदले की भावना से दहेज वाला केस बन जाता हैं। प्रेम विवाह जीवन भर कम लोग ही चला पाते हैं, नियत बदलते समय नहीं लगता है।
क्योंकि दो लोगों( प्रेमियों) के बीच में या साथ में कोई नहीं होता जो, सही राह दिखा सके और वो भी अपना फैसला खुद करने में यकीन रखते हैं इसलिए, अलग होने में समय नहीं लगता है।
जबकि सामाजिक विवाह में हर कोई सलाह, सहारा और साथ दे सकता हैं, दोनों को साथ रहने के लिए मना सकते हैं, जरूरत होने पर कठोरता भी दिखा सकते हैं, इसलिए तलाक शब्द जहन में नहीं आता है।
उसी कठोरता को कानून अपराध मान बैठा है, और समाज को अपराधी।
कानून को यह भी गारंटी लेनी चाहिए कि, जिन दो प्रेमियों को समाज से अलग करके एक दूसरे से मिला रहा हैं वो कभी अलग नहीं होने चाहिए।
किसी एक पर भी अपने साथी की वजह से कोई दबाव, आंच या हानि नहीं होगी।
और यदि ऐसा होता हैं तो कानून को भंग कर दिया जाएगा।
मां बाप के पास संतान का कोई अधिकार नहीं रहता है तो, संतान को जन्म देने या बड़ा करने का कोई कारण बताए।
मां बाप और संतान के बीच में कानून घुस सकता हैं तो, संतान पैदा होते ही कानून की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि उसकी हर आवश्यकता कानून पूरी करेगा, मां बाप को पालन पोषण के कर्तव्य से मुक्त कर देना चाहिए।
मेरा ब्लॉग जो भी पढ़ रहे हैं, यह लेख आपके लिए महत्वपूर्ण हैं, चाहे आप समाज से तालुक रखते हों या कानून के रखवाले हों,
चाहे आप भागने का विचार कर रहे हों या भाग चुके हो,
चाहे आप भागने वाले के साथ हों या खिलाफ हों,
सबको पढ़ना और जानना जरूरी है इसलिए आपके अन्य मित्रों और दुश्मनों को भी साझा किया करें।
आप सामाजिक हों तो कानून को फटकार जरुर लगाएं,
और यदि आप कानूनी रूप से हों तो "कानून" को समाज का आदर करना सिखाओ, किसी मां बाप और संतानों के बीच में मत घुसने दो, आपका कहा तो मानता होगा,
और आपके पास तो हथौड़ा भी होता हैं ना, जो टेबल पर पीटते हैं "ऑर्डर ऑर्डर" करके,
चलो ठीक है, जो जैसा समझे, मैने मेरी भावना प्रकट कर दी, और यह मेरा भी अधिकार है।
आपको बुरी लगे तो अन पढ़ी कर देना, अच्छी लगी तो याद कर लेना और भी विचार व्यक्त करूंगा, धन्यवाद।
सामाजिक विचारक - देवा जांगिड़
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अच्छा हैं