शुक्रवार, सितंबर 21, 2018

हम और आप

हम और आप,
हमारे पास जुबां होने के बाद भी हम बोल नहीं पा रहे, जो हमें बोलना चाहिए और जिनके पास जुबां नहीं है वो भी इशारा कर समझा देते हैं।
परंतु, बुरा तब लगता है जब जुबां वाला कड़वा बोल देता है। इससे तो चुप ही बेहतर हैं।
हमारी वाणी जितनी मधुर एवं शुद्ध होगी, हमारी ख्याति और प्रसंशा भी उतनी ही अधिक होगी।
जीवन में अच्छा आदमी कहलाना चाहते हैं तो कुछ आदतों को छोड़ कर बोलने में माहिर हो सकते हों।
सामने वाले को हमारे अधिक बोलने का अहसास भी नहीं होगा यदि, आप दो शब्दों का प्रयोग करने लगे तो। https://amzn.to/2ReFRoL
पहला शब्द है 'आप’
उदाहरण के लिए - आप कैसे हैं, आप क्या करते हैं,
यदि आप की जगह 'तुम’ का प्रयोग किया जाये तो बहुत कुछ बदल जाता है।
सामने वाले को कम आंकने के समान होता है।
दुसरा शब्द है 'हम’
उदाहरण के लिए - हम यह कर सकते हैं, हम साथ में है तो कोई हमारा क्या कर लेगा,

  1. हम शब्द से सभी सदस्यों, साथियों और पूरे संगठन को श्रेय जाता है।
यदि इस जगह आप ‘मैं’ का प्रयोग करते हैं तो आपको हानि होगी क्योंकि, पूरा श्रेय खुद ले लेते हैं और आपके साथी आपसे नाराज़ हो कर आपका साथ छोड़ देंगे।
जिसने अपनी वाणी में मधुरता लाने का प्रयास किया है वो ही सबका चहेता बन गया है।
धन्यवाद मित्रों
आपका दोस्त - देवा जांगिड़
(सामाजिक विचारक)

रविवार, सितंबर 16, 2018

श्री विश्वकर्मा पूजा दिवस


कौन हैं भगवान विश्‍वकर्मा?
भगवान विश्‍वकर्मा को निर्माण का देवता माना जाता है. मान्‍यता है कि उन्‍होंने देवताओं के लिए अनेकों भव्‍य महलों, आलीशान भवनों, हथियारों और सिंघासनों का निर्माण किया. मान्‍यता है कि एक बार असुरों से परेशान देवताओं की गुहार पर विश्‍वकर्मा ने महर्षि दधीची की हड्डियों देवताओं के राजा इंद्र के लिए वज्र बनाया. यह वज्र इतना प्रभावशाली था कि असुरों का सर्वनाश हो गया. यही वजह है कि सभी देवताओं में भगवान विश्‍वकर्मा का विशेष स्‍थान है. विश्‍वकर्मा ने एक से बढ़कर एक भवन बनाए. मान्‍यता है कि उन्‍होंने रावण की लंका, कृष्‍ण नगरी द्वारिका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्‍थ नगरी और हस्तिनापुर का निर्माण किया.  माना जाता है कि उन्‍होंने उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ सहित, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण अपने हाथों से किया था. इसके अलावा उन्‍होंने कई बेजोड़ हथियार बनाए जिनमें भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्‍णु का सुदर्शन चक्र और यमराज का कालदंड शामिल हैं. यही नहीं उन्‍होंने दानवीर कर्ण के कुंडल और पुष्‍पक विमान भी बनाया. माना जाता है कि रावण के अंत के बाद राम, लक्ष्‍मण सीता और अन्‍य साथी इसी पुष्‍पक विमान पर बैठकर अयोध्‍या लौटे थे.

कैसे मनाई जाती है विश्‍वकर्मा जयंती?
विश्‍वकर्मा दिवस घरों के अलावा दफ्तरों और कारखानों में विशेष रूप से मनाया जाता है. जो लोग इंजीनियरिंग, आर्किटेक्‍चर, चित्रकारी, वेल्डिंग और मशीनों के काम से जुड़े हुए वे खास तौर से इस दिन को बड़े उत्‍साह के साथ मनाते हैं. इस दिन मशीनों, दफ्तरों और कारखानों की सफाई की जाती है. साथ ही विश्‍वकर्मा की मूर्तियों को सजाया जाता है. घरों में लोग अपनी गाड़‍ियों, कंम्‍प्‍यूटर, लैपटॉप व अन्‍य मशीनों की पूजा करते हैं. मंदिर में विश्‍वकर्मा भगवान की मूर्ति या फोटो की विधिवत पूजा करने के बाद आरती की जाती है. अंत में प्रसाद वितरण किया जाता है।
विश्‍वकर्मा पूजा विधि 
- सबसे पहले अपनी गाड़ी, मोटर या दुकान की मशीनों को साफ कर लें. 
- उसके बाद स्‍नान करे,
- घर के मंदिर में बैठकर विष्‍णु जी का ध्‍यान करें और पुष्‍प चढाएं. 
- एक कमंडल में पानी लेकर उसमें पुष्‍प डालें. 
- अब भगवान विश्‍वकर्मा का ध्‍यान करें. 
- अब जमीन पर आठ पंखुड़‍ियों वाला कमल बना लें,
- अब उस स्‍थान पर सात प्रकार के अनाज रखें. 
- अनाज पर तांबे या मिट्टी के बर्तन में रखे पानी का छिड़काव करें. 
- अब चावल पात्र को समर्पित करते हुए वरुण देव का ध्‍यान करें. 
- अब सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी और दक्षिणा को कलश में डालकर उसे कपड़े से ढक दें. 
- अब भगवान विश्‍वकर्मा को फूल चढ़ाकर आशीर्वाद लें.
- अंत में भगवान विश्‍वकर्मा की आरती उतारें. 

विश्‍वकर्मा की आरती
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥

 ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥

 रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥

 जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥

 एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥

 ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥

श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥

जय श्री विश्वकर्मा की

गुरुवार, सितंबर 06, 2018

आंदोलन नहीं करना हैं।

आज देश के नाम लेख लिखने का प्रयास किया है मेने।

आप विश्वास कर सकते हैं मुझ पर कि, यह लेख केवल मेरी एक व्यक्तिगत चाहत है या यूं कहें तो, मैं भारत को इस रुप में देखना चाहता हूं।

न मेरी कोई राजनीति पार्टी से संधि हुई हैं, न किसी राजनेता से और न ही कोई ताकतवर शख्सियत का दबाव है।

होशो-हवास और स्वतंत्र दिल से लिख रहा हूं।

देश में लूट मची हुई है चारों ओर, कोई राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगा है, कोई धर्म और आध्यात्म के नाम से माल निगल रहा है, कोई कामवासना ग्रसित राक्षस बन घूम रहा हैं, कोई जात-पात के सहारे जहर घोल रहा है तो कोई पीठ पीछे घात लगाए बैठे हैं।

सीधे शब्दों में कहूं तो, हमारे देश लालची नेता, निर्लज्ज और अधर्मी प्रेरक (बाबा, मौलाना, धर्मगुरु, फ़कीर आदि ठेकेदार) जातिवादी लीडर, धोखेबाज और बलात्कारी लोगों का पनाहगाह बन रहा है।

आज की स्थिति फिर भी ठीक है लेकिन जो हालात बन रहे हैं उससे अदांजा लगाया जाये तो, आने वाले ३० साल में बहुत दयनीय स्थिति हो सकती हैं।

आप कल्पना कर सकते हैं,

हर क्षेत्र (जैसे जिला, तहसील और यहां तक कि गांव भी) अपना एक अलग देश बन जाएगा,

हर जाति का अलग अलग धर्म होगा,हर परिवार में चुनाव होने लगेगा और कानून इतिहास बन जायेगा, सेना और पुलिस अपनी जाति के साथ होकर, एक दूसरे के खिलाफ हो जायेंगे।

कामुक लोग कुत्तों की तरह झुंड बनाकर गलियों में शिकार ढूंढने निकलेंगे, लड़कियों की कमी हो

जायेंगी और यदि होगी तो भी भूमिगत होकर रहने को मजबूर हो जायेगी।

धार्मिक स्थल शापिंग मॉल बन जायेंगे।

सब खुद को ताकतवर बनाने की कोशिश में कमजोर को दबाने में कामयाब हो जायेंगे।

कानों में केवल हाहाकार और मारो मारो की आवाज सुनाई देगी।

अब आप वर्तमान में आकर सोचें कि हम उस भयंकर विनाश से बचने के लिए इस समय क्या कर सकते हैं।

“आरक्षण”

आज कोई आरक्षण के खिलाफ है तो कोई आरक्षण की मांग कर रहा है, इसका कारण यह है कि हमारे देश में भेदभाव हैं।

देश दावा करता है कि यहां कानून सबके लिए समान है, तो कानून पर अंगुली क्यूं उठती हैं?

मेरा मानना हैं कि गड़बड़ तो हैं।

मैं देश का नागरिक हूं मेरा अधिकार है कि, देश की हर गतिविधि पर नजर रखने की कोशिश करुं।

देश के नागरिकों के लिए मेरी सलाह देना भी जरूरी हैं, मानना या न मानना, भाई-बहनों के उपर निर्भर करता हैं।

आरक्षण देश के कमजोर लोगों के लिए जरूरी है और मैं आरक्षण समर्थन करता हूं।

मुझे आरक्षण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि, मैं कमजोर या गरीब नहीं हूं और मैं किसी गरीब का हक छीनना नहीं चाहता हूं।

मेरी जाति या धर्म दलितों में नहीं आता है, हां मेरी जाति या धर्म में कोई गरीब जरूरतमंद हो सकता हैं।

और उसे आरक्षण की जरूरत हो सकती है।

मेरी नज़र से दलित कोई जाति या धर्म नहीं है, सबके पास काम और धन भी है।

मैं गरीब, दरिद्र, दलित, और असहाय उन लोगों को मानता हूं जो अपने जीवन में आवश्यक सामग्री नहीं खरीद सकते हैं।

एक तरफ तो हमें कहा जाता हैं कि किसी जाति को दलित कहकर अपमानित मत करो और दुसरी तरफ से खुद कहते हैं कि हम दलितों के साथ हैं ( विशेष जाति और धर्म के नाम लेकर)

जब देश की जनसंख्या गणना होती हैं तो पूछा जाता है कि आपकी जाति क्या हैं?

हमें अलग अलग भागों में बांटकर बताया जाता हैं कि आप वो हैं और वो ,वो हैं ‌, आप इतने हैं और वो इतने हैं।

जबकि यह पुछा जाना चाहिए कि आपकी आमदनी कितनी हैं, और आपको आवश्यकता कितनी हैं।

लोगों में धर्म के प्रति जागरूक रहने की जरूरत है क्योंकि, कई लोग खुद को धर्म का ठेकेदार बता कर, डराते हैं या मनोकामना पूर्ण करने का दावा करके अपने पक्ष में कर रहे हैं।

कोई मिलने की फीस ले रहे हैं तो कोई अपना बनाया सामान बेच रहे हैं।

धर्म पुण्य करने की चाहत रखने वालों को किसी असहाय और भुखे, आदमी और पशु पक्षियों की सहायता करने के लिए दान करना चाहिए।

वह चाहे आपकी नजर में गाय हो या गरीब हो या मोर हों।

टीवी, फिल्म और बाजार में चल रहे नग्न तस्वीरें, विडियो, हरकतों और अश्लीलता को रोककर ही बलात्कारियों को कम किया जा सकता हैं।

टीवी चैनलों, फिल्म डायरेक्टरों और विज्ञापनों में कामुकता बढ़ाने वाले किसी भी दृश्य को वर्जित कर दिया जाए, छोटे-छोटे कपड़ों में घूमने वाले लोगों पर जुर्माना लगाया जाये।

अशुद्ध भाषा का प्रयोग करने वाले गाने, भाषणों और काव्यों पर जुर्माना लगाया जाये।

अश्लीलता शेयर करना जुर्म होना चाहिए।

और भी बहुत सुधार लाने की आवश्यकता है देश में, आप भी जानते हैं लेकिन, मेरी समझ में जितना आता है उसे आप तक पहुंचा दिया।

समय के अभाव में मेरा लेख संपूर्ण करने का समय आ गया है।

आपकों मेरे विचार अच्छे लगे तो, अपने मित्रों को भी बताएं,

जल्द ही एक और लेख के साथ अगली बार आपसे हमारी मुलाकात होगी।

जय भारत

सामाजिक विचारक - देवा जांगिड़ गुड़ामालानी

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संत रामानंद जी महाराज के शिष्य

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