मुझसे किसी ने पुछ लिया,
“क्या तूने कभी दिल्ली देखी हैं”
****
मैं डर गया था उस वक्त,
क्युंकि हर पल हर घडी हम सुनते रहते हैं “दिल्ली”
हमारे गाँव में जब मतदान होता हैं तब यह जगह बहुत फेमस हो जाती हैं,
“क्या तूने कभी दिल्ली देखी हैं”
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मैं डर गया था उस वक्त,
क्युंकि हर पल हर घडी हम सुनते रहते हैं “दिल्ली”
हमारे गाँव में जब मतदान होता हैं तब यह जगह बहुत फेमस हो जाती हैं,
कानों में कुछ शब्द आते जाते रहते हैं, ‘ दिल्ली’ ‘नई दिल्ली’ ‘सरकार’ ‘केंद्र’ ‘विकास’ और ‘गरिबी’,
लेकिन गरिबी को छोड़कर बाकी नाम वाली सभी जगह अब तक देखी नही थी,
हमारे गाँव के बडे बुढे कहते थे, अबकी बार हाथ की सरकार आई हैं, अबकी बार फूल की सरकार आई हैं,
हम गाँव के चोक जाकर देखते थे, पर खाली आंखे मुझसे पुछती थी, बेटा सरकार अभी तक दिख नही रही,
आखिर हमने जब कभी गाँव वालों से पुछा तो बोले, बेटा वो तो आकर चली गयी, अबकी देखते हैं कौन्सी आवे हैं,
पिछले तीस सालों से हमको यही जवाब मिलता था.
एक हमारे गाँव वाला भी हमारे अन्गुलियों के नाखून काला करवा के दिल्ली गया था,
पांच साल हो गया,
अब यह दिल्ली देखने की बात कर रहा था,
फिर डर तो लगना ही था,
कहीं उसको भी इसी तरह दिल्ली ले गया होगा,
गाँव वालों ने कह रखा था, अंजान आदमी आता हैं दिल्ली ले जाता हैं और बेच देता हैं,
दादाजी की कही बात आज सच हो रहि लग रहा था,
मेने आव देखा न ताव,
गायों के लिये इकठ्ठे किये चारे के ढेर में घुस गया,
क्युंकि कुछ साल पहले भी हमारे गाँव शादीशुदा लोग भी पेड़ो पर और छुप छुपकर दिन काटते थे,
आज मुझे भी यही लग रहा था,
मैने अपनी जान की परवाह किये बगेर हिम्मत करके उस आदमी से पुछ ही लिया :-
बताओ, वो आदमी का क्या किया तुमने,
जो हमको कहकर गया था कि “ मैं दिल्ली जाकर आता हुँ”
लेखक :- देवा जाँगिड़ “बान्ड”
नोट:- कृपया लेख में काट छाँट ना करें, ऐसा करने पर हमारी कोई जिम्मेदारी नही रहेगी.
अत: आप पर कानूनी संकट आ सकता है !
धन्यवाद
लेकिन गरिबी को छोड़कर बाकी नाम वाली सभी जगह अब तक देखी नही थी,
हमारे गाँव के बडे बुढे कहते थे, अबकी बार हाथ की सरकार आई हैं, अबकी बार फूल की सरकार आई हैं,
हम गाँव के चोक जाकर देखते थे, पर खाली आंखे मुझसे पुछती थी, बेटा सरकार अभी तक दिख नही रही,
आखिर हमने जब कभी गाँव वालों से पुछा तो बोले, बेटा वो तो आकर चली गयी, अबकी देखते हैं कौन्सी आवे हैं,
पिछले तीस सालों से हमको यही जवाब मिलता था.
एक हमारे गाँव वाला भी हमारे अन्गुलियों के नाखून काला करवा के दिल्ली गया था,
पांच साल हो गया,
अब यह दिल्ली देखने की बात कर रहा था,
फिर डर तो लगना ही था,
कहीं उसको भी इसी तरह दिल्ली ले गया होगा,
गाँव वालों ने कह रखा था, अंजान आदमी आता हैं दिल्ली ले जाता हैं और बेच देता हैं,
दादाजी की कही बात आज सच हो रहि लग रहा था,
मेने आव देखा न ताव,
गायों के लिये इकठ्ठे किये चारे के ढेर में घुस गया,
क्युंकि कुछ साल पहले भी हमारे गाँव शादीशुदा लोग भी पेड़ो पर और छुप छुपकर दिन काटते थे,
आज मुझे भी यही लग रहा था,
मैने अपनी जान की परवाह किये बगेर हिम्मत करके उस आदमी से पुछ ही लिया :-
बताओ, वो आदमी का क्या किया तुमने,
जो हमको कहकर गया था कि “ मैं दिल्ली जाकर आता हुँ”
लेखक :- देवा जाँगिड़ “बान्ड”
नोट:- कृपया लेख में काट छाँट ना करें, ऐसा करने पर हमारी कोई जिम्मेदारी नही रहेगी.
अत: आप पर कानूनी संकट आ सकता है !
धन्यवाद