मंगलवार, जनवरी 10, 2017

एक बुजुर्ग की दर्द भरी दास्तां

मैं भी जवानी के समय एक अच्छे परिवार की नींव रखने की सोच रहा था, मेरे अपने प्यारे प्यारे बच्चे हों, उन्हें पढ़ा लिखा कर काबिल बनाऊंगा!

मेरे माँ बाप ने जो मेरे लिए दुःख सहन किया, उसी तरह मैं भी उनके लिए मेहनत करके , अपने पैरों पर खड़ा करूँगा !

और मैने वो सब किया भी , अपने बच्चों के लिए,

अब बच्चे बड़े होकर बेटे बन गये हैं !

शादी हो गयी हैं,एक ने लव मैरिज किया हैं वो तो अपनी पत्नी के साथ शहर में अलग मकान में रहता हैं !

दूसरे की शादी समाज की लड़की से हुई हैं उसके साथ हम बूढ़ा बूढी रहते हैं !

हमारी बिमारी के कारण उनको परेशानी हो रही थी तो शहर में दूसरे बेटे के पास आगये, अब यहां भी परेशानी हो रही है इनको हमारे रहन सहन से,

हमारे पास ढंग नही हैं रहने का,

वापस गाँव भेज दिया है हमको आज,

छोटे और बड़े के बीच नोक झोक हुई और बात बंटवारे तक आ गयी, बूढी शहर में बूढ़ा गाँव में,

बहुओ को हमारी आदते पसंद नही थी, बेटों ने उनकी बात सही समझी और हम बूढ़ा बूढी घर से बाहर की तरफ हो गये,

यह बेटे बहुओ का दोष था या हमारा जो इनको पैदा किया !

ठण्ड गर्मी वर्षा सारे मौसम हमने दो तीन बार देखें थे !

फिर भगवान ले गया हमको अपने पास

आज वो दोनों खुश हैं कि हमारे माँ बाप होते तो लोग ताना मारते, अच्छा हुआ कि मर गये,

आप जाकर देख सकते हैं हमारी सुन्दर हीरे जड़ित फोटो घर लटकी हैं,

आपको गर्व से कहेंगे कि, यह हमारे माँ और बाऊजी हैं,

आप तो समझेंगे कि यह बहुत बड़ा माँ बाप का सेवक हैं !

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