रविवार, सितंबर 27, 2015

मृत्यु भोज

हम समाज में फैली इस कुरीति की निंदा करते हैं तथा समाज से अनुरोध करते हैं कि मृत्यु भोज बंद करने में हमारी मदद करें

हम सब मिलकर यदि इंटरनेट के जरिये लोगों को इसके दुष्प्रभाव बतायें तो जरूर इस रीति को बंद करने के करीब पहुंच जाएंगे
हिन्दू समाज में जब किसी परिवार में मौत हो जाती है, तो सभी परिजन बारह दिन तक शोक मानते हैं .तत्पश्चात तेरहवीं का संस्कार होता है, जिसे एक जश्न का रूप दे दिया जाता है. .इस दिन के संस्कार के अंतर्गत पहले कम से कम तेरह ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है जीसे जीमना भी कहते हैं.उसके बाद पंडितों द्वारा बताई गयी वस्तुएं मृतक की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मणों को दान में दी जाती हैं.उसके पश्चात् सभी आगंतुक रिश्तेदारों ,मित्रों एवं मोहल्ले के सभी अड़ोसी- पड़ोसियों को मृत्यु भोज के रूप में दावत दी जाती है.इस दावत में अन्य सभी दावतों के समान पकवान एवं मिष्ठान इत्यादि पेश किया जाता है. सभी आगंतुकों से दावत खाने के लिए आग्रह किया जाता है.जैसे कोई ख़ुशी का उत्सव हो.विडंबना यह है ये सभी संस्कार कार्यक्रम घर के मुखिया के लिए कराना आवश्यक होता है,वर्ना मृतक की आत्मा को शांती नहीं मिलती ,चाहे परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उसकी शांती वर्षों के लिए भंग हो जाय (उसे कर्ज लेकर संस्कार आयोजित करना पड़े ).दूसरी तरफ यदि परिवार संपन्न है,परन्तु घर के लोग इस आडम्बर में विश्वास नहीं रखते तो उन्हें मृतक के प्रति संवेदनशील और कंजूस जैसे शब्द कह कर अपमानित किया जाता है .
क्या यह तर्क संगत है ,परिवार के सदस्य की मौत का धर्म के नाम पर जश्न मनाया जाय ?क्या यह उचित है आर्थिक रूप से सक्षम न होते हुए भी अपने परिजनों का भविष्य दांव पर लगा कर पंडितों के घर भरे जाएँ ,और पूरे मोहल्ले को दावत दी जाय ? क्या परिवार को दरिद्रता के अँधेरे में धकेल कर मृतक की आत्मा को शांती मिल सकेगी ?क्या पंडितों को विभिन्न रूप में दान देकर ही मृतक के प्रति श्रद्धांजलि होगी ,उसके प्रति संवेदन शीलता मानी जाएगी 
सभी भाई इस पर विचार करें की क्या म्रत्यु भोज करना सही हैं एक परिवार के  सदस्य म्रत्यु हो ,और हम उसकी म्रत्यु पर भोज का आयोजन करें सही नही लगता ,इसमें अगर कोई धर्म करने की महशुस करते हो तो ,गौ शाला में दान दे उनको चारा दे ,अनाथ बच्चों की मदद करदे ,जिनको भोजन नही मिलता हो उनको भोजन करादे ,जानवरों को जुवार डाले ,और भी कई साधन हैं जिनको करने से आत्मा की शांति होती हैं ,आओ एक आवाज के साथ आगे आये और इसको बंद करने में सहयोग करें ,

बाल विवाह

हमारे समाज की इस कमजोरी को जड़ से उखाड़ फैंकना हैं आप हमारी मदद करें
लोग कम खर्च के लालच में अपनी बेटियों की जिंदगी से सुख सीन लेते हैं लेकिन जब उनकी बेटी या बेटे पर परिवार का बोझ आता हैं तब वो अपने माता पिता को दोषी ठहराते हैं, क्या आप अपने ही बच्चों की बर्बादी करना चाहते हैं यदि नही तो आज से ही पर्ण लें कि,
हम किसी को न बाल विवाह करने देंगे और न ही हम बाल विवाह करेंगे
आप मेरा यह संदेश और लोगों तक पहुंचाये और उन्हें इस बुराई से अवगत करावे में आपका आभार मानता हूँ
 कभी कभी तो यह भी देखने में आता है कि कम उम्र में बाल विवाह कर दिया जाता है और बाद में जाकर लड़का उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त कर लेता है और
 फिर वह बड़ा होकर बचपन किये गए विवाह को ठुकरा देता है और अपनी पत्‍नी से तलाक ले लेता है । क्योंकि विवाह के पश्‍चात् माँ - बाप कन्‍या को शिक्षा से वंचित कर देते है और उस कन्‍या के लिए जीवन नर्क के समान हो जाता है । जो भी हो इस कुप्रथा का अंत होना बहुत जरूरी है । वैसे हमारे देश में
 बालविवाह रोकने के लिए कानून मौजूद है । लेकिन कानून के सहारे इसे रोका नहीं जा सकता । बालविवाह एक सामाजिक समस्या है । अत:इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव है । सो समाज को आगे आना होगा तथा बालिका शिक्षा को और बढ़ावा देना होगा । आज युवा वर्ग को आगे आकर इसके विरूद्ध आवाज उठानी होगी और अपने परिवार व समाज के लोगों को इस कुप्रथा को खत्‍म करने के लिए जागरूक करना होगा ।
 जिस उम्र में बच्चे खेलने - कूदते है अगर उस उमर में उनका विवाह करा दिया जाये तो उनका जीवन खराब हो जाता है ! तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है । बालविवाह एक अपराध है, इसकी रोकथाम के लिए समाज के प्रत्येक
वर्ग को आगे आना चाहिए । लोगों को जागरूक होकर इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए । बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण लिंगभेद और अशिक्षा है साथ ही लड़कियों को कम रुतबा दिया जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना । क्या इसके पीछे आज भी अज्ञानता ही जिमेदार है या फिर धार्मिक, सामाजिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज ही इसका मुख्‍य कारण है, कारण चाहे कोई भी हो
 खामियाजा तो बच्चों को ही भुगतना पड़ता है ! राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और प. बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है ।
 बाल विवाह निषेध अधिकारी द्वारा बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के अनुसार आयोजकों एवं बाल विवाह में भाग लेने वाले व्यहक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही के तहत् जुर्माना एवं सजा हेतु कार्यवाही की जाती है। जो 1.00 लाख रूपये जुर्माना अथवा 2 वर्ष का कठोर कारावास अथवा दोनो दिये जाने का प्रावधान है। अक्षय तृतीया पर अबूझ सावा होने के कारण बाल विवाह अधिक होने की संभावनाओं के मद्देनजर माह मार्च व अप्रेल में इस दिशा में विशेष प्रयास किय जाते है।
 इस अबूझ सावे के अवसर पर अधिनियम 2006 के तहत् जिला कलेक्ट र को जिले के बाल विवाहों को रोकने के लिए निषेध अधिकारी की शक्तियां प्रदान की गई है।

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