सोमवार, जनवरी 06, 2025

भद्रा काल क्या होता हैं।


दोस्तों,
भद्रा हिंदू ज्योतिष और पंचांग में एक विशेष अवधारणा है, जिसे शुभ और अशुभ मुहूर्त में महत्वपूर्ण माना जाता है। भद्रा को काल का एक विशेष अंग माना जाता है, जो अशुभ और बाधक मानी जाती है। इसलिए, जब भद्रा काल होती है, तब कई धार्मिक और मांगलिक कार्यों को करने से बचा जाता है। विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य शुभ कार्यों को भद्रा के समय में करने की मनाही है।

भद्रा का संबंध काल और ज्योतिष से: भद्रा का उल्लेख पंचांग में किया जाता है। भद्रा काल को शुभ समय नहीं माना जाता, और ज्योतिष के अनुसार, इस समय पर किए गए कार्यों में विघ्न, बाधा, और अशांति की संभावनाएँ होती हैं। भद्रा काल हर दिन अलग-अलग समय पर आता है, और यह चंद्रमा की स्थिति और नक्षत्रों पर निर्भर करता है।

भद्रा के प्रकार: भद्रा के दो प्रकार माने जाते हैं:

1. पाताल भद्रा: यह पृथ्वी के नीचे मानी जाती है और इसका प्रभाव मुख्यतः नकारात्मक होता है। इसे अधिक अशुभ माना गया है।


2. स्वर्गीय भद्रा: यह पृथ्वी के ऊपर मानी जाती है और इसे तुलनात्मक रूप से कम अशुभ माना जाता है।



भद्रा का प्रतीक और उसका स्वरूप: पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन मानी जाती हैं।
 उन्हें अशुभ कार्यों की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि उनकी दृष्टि जहां पड़ती है, वहां कुछ न कुछ बाधाएं उत्पन्न होती हैं। भद्रा को एक दिव्य शक्ति के रूप में भी देखा जाता है जो अशुभ और बाधक ऊर्जा का प्रतीक है।

भद्रा काल का प्रयोग और महत्व: पंचांग के अनुसार, भद्रा के समय पर मांगलिक कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है। विशेष रूप से विवाह, गृह प्रवेश, और अन्य शुभ कार्य भद्रा काल में वर्जित होते हैं। हालांकि, कुछ कार्य, जैसे तंत्र साधना, दान, और शुभ संकल्प, इस समय में किए जा सकते हैं। भद्रा काल को समाप्त होने के बाद ही शुभ कार्य करना उचित माना जाता है।
भद्रा का समय पंचांग में प्रतिदिन देखा जा सकता है, और यह समय हर दिन अलग-अलग होता है। इसलिए लोग इसे ध्यान में रखते हुए अपने कार्यों की योजना बनाते हैं, ताकि शुभ कार्यों में बाधा न आए।
आशा है कि आप भद्रा काल के बारे में अच्छे से जान गए होंगे, हमें कमेंट बॉक्स मे जय श्रीराम लिख कर भेजें।

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